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5. Naagree Lipi 10th Class

लेखक परिचय-

विविध विषयों के प्रतिभाधनी साहित्य को ऐतिहासिक धरातल पर लाकर रखनेवाले गुणाकर मुले जी महान लेखकों में अग्रणी हैं। इनका जून्म 1935 ई० में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक गाँव में हुआ था । प्रारंभिक
शिक्षा गाँव में मराठी भाषा में प्राप्त की । वर्धा जाकर नौकरी के साथ-साथ अंग्रेजी व हिन्दी की अध्ययन किए । बाद में इलाहाबाद में गणित विषय से मैट्रिक से एम० ए० तक की पढ़ाई की ।
     गुणाकर मूले जी की रचना का क्षेत्र व्यापक रहा। इन्होंने गणित, खगोल-विज्ञान, अंतरिक्ष-विज्ञान
विज्ञान का इतिहास, पुरालिपि शास्त्र, प्राचीन भारत का इतिहास एवं भारतीय संस्कृति सम्बन्धित
2500 से भी अधिक लेखों तथा 30 पुस्तकों का प्रकाशन करवाये ।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं अक्षरों की कहानी' "भारत इतिहास और संस्कृति' "प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक", "आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक" भारतीय लिपियों की कहानी इत्यादि । गुणाकर मुले का निधन 2009 में हो गया।
निबंध परिचय- प्रस्तुत निबंध गुणाकर मुले जी की प्रसिद्ध रचना " भारतीय लिपियों की कहानी" से लिया गया है । इस निबंध में हिन्दी की लिपि नागरी (देवनागरी) लिपि का ऐतिहासिक विकास की रूपरेखा तैयार की गई है।
Table of Content (toc)
5. नागरी लिपि - गुणाकर मुले

5. नागरी लिपि - गुणाकर मुले

सारांश-

नागरी अर्थात् देवनागरी लिपि में छपने की क्रिया 18वीं सदी से आरम्भ हुई जिससे इस लिपि को स्थिरता प्राप्त हुई।
      हिन्दी संस्कृत इत्यादि विविध भारतीय भाषाओं की लिपि देवनागरी है । नेपाल व नेपाली  भाषा की लिपि भी देवनागरी ही है । गुजरात महाराष्ट्र की भी लिपि. देवनागरी ही है । दक्षिण भारत में देवनागरी को 'नॉंदिनागरी'" कहते हैं। वस्तुतः इस लिपि के आरंभिक लेख दक्षिण भारत से ही प्रारम्भ हुआ, विजय नगर के राजाओं के द्वारा इसका नंदिनागरी नाम दिया गया ।
      ग्ग्रारहवीं सदी के प्रतापी चोड राजा "राज राज" तथा "राजेन्द्र" के सिक्के में देवनागरी लिपि के अक्षर छपे हैं। बारहवीं सदी में केरल के शासकों ने भी अपने सिक्के पर देवनागरी लिपि का प्रयोग किया था। सुदूर दक्षिण से प्राप्त 9वीं सदी का ताम्रपत्र पर देवनागरी लिपि लिखा गया है।
     उत्तर भारत में मुसलमान शासक महमूद गजनवी ने भी अपने सिक्के पर देवनागरी लिपि का प्रयोग किया था । अन्य मुसलमान शासकों जैसे मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह आदि ने देवनागरी लिपि ही अपने सिक्के पर प्रयोग किया है । अकबर ने तो अपने सिक्के पर राम सीता की मूर्ति के साथ-साथ 'रामसीय' भी लिखवाये थे। उत्तर भारत में मेवाड़ के गुहिल, सांभर-अजमेर के चौहान, कन्नौज के गाहडवाल, काठियावाड़ -गुजरात के सोलंकी, आबू के परमार, बुंदेलखंड के चंदेल तथा त्रिपुरा के कलचुरी वंशीय शासकों के लेख नागरी लिपि में ही उपलब्ध हुए हैं। इससे स्पष्ट है कि सम्पूर्ण भारत में नागरी लिपि का उपयोग होता रहा है जो उत्तर भारत में देवनागरी कहलाती है ।
      गुप्त काल की ब्राह्मी लिपि तथा बाद की सिद्धम् लिपि भी नागरी लिपि से मिलती-जुलती हैं।
       दुक्षिण भारत में प्रचलित नंदिनागरी (नागरी) लिपि का लेख आठवीं सदी के प्राप्त है तथा उत्तर भारत में 9वीं सदी के प्राप्त हुए हैं।
     हिन्दी भाषा की यह लिपि नागरी, देवनागरी या नॉदिनागरी क्यों कहलाई । इस पक्ष में लेखक ने पादताडितकम नाटक के आधार पर कहा है कि पटना नगर का प्राचीन नाम "नगर" था। पटना में ही इस लिपि का उद्भव हुआ होगा। अत: इसका नाम नागरी रख दिया गया। देवनागरी लिपि कहलाने वाली इस लिपि के नामकरण के पक्ष में लेखक का कहनी है कि देश के काशी नागर  को देव नगर कहा जाता था । सम्भवत: काशी में ही इस लिपि का नाम देवनागरी लिपि रख दिया गया हो तथा महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनागरी नाम पड़ा।
     इस प्रकार यह लिपि 8वीं सदी से 1वीं सदी के बीच सम्पूर्ण भारत में व्याप्त थी तथा इस लिपि के उदय के साथ ही भारतीय इतिहास तथा संस्कृति में नए युग की शुरुआत होती है ।
     हिन्दी साहित्य के आदि कवि "सरहपाद'" ने 8वीं सदी में 'दोहाकोश' लिखा था । जिसका हस्तलिपि तिब्बत से मिला है । दरअसल में नागरी लिपि का आरंभिक लेख चिंध्य पर्वत के नीचे प्रदेश से मिले हैं।
         अनेक विद्वानों का मत है कि नागरी लिपि का प्राचीनतम लेख दक्षिण भारत के राष्ट्रकुट वंशके राजा दतिदुर्ग का दान पत्र (754 ई० ) है तथा अमोघवर्ष के शासन काल में गणितज्ञ महावीराचार्य का "गणित सार-संग्रह'" (850 ई-) इसी लिपि में लिखा गया ।

    महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश तथा ग्यारहवीं सदी में कोल्हापुर सतारा प्रदेश में शिलाहारों का राज्य स्थापित था जिसका अभिलेख नागरी लिपि में मिले हैं। संस्कृत-मराठी भाषाओं में (1012 ई०) शिलालेख शिलाहार राज केशिदेव का मिला है।
      देवगिरि के यादव राजाओं एवं कल्याण के पश्चिमी चालुक्य नरेशों के लेख भी देवनागरी में मिले हैं। उड़ीसा में गंगवंश के कुछ शासकों के लेख भी नागरी लिपि में मिले हैं। दक्षिण भारत के पांड्य प्रदेश से राजा वर गुण के ताम्र पत्र में संस्कृत भाषा (नागरी लिपि) 9वीं सदी में लिखा गया था। उत्तर भारत में मिहिर भोज (840-81 ई०) की ग्वालियर प्रशस्ति पत्र नागरी लिपि ( संस्कृत भाषा) में लिखा मिला है। धारा नगरी के परमार शासक भोज का बेतमा दान पत्र (1020 ई०) भी संस्कृत भाषा में लिखा मिला है।
    12वीं सदी में सम्पूर्ण उत्तर भारत में देवनागरी लिपि का प्रयोग होता था ।
    इस प्रकार कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण भारत की एवं सबसे प्राचीन लिपि नागरी (देवनागरी) ही है ।

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

1. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आई है ?

उत्तर- 2 सदी पूर्व जेब इस लिपि के टाइप बने और पुस्तक छपने लगी तब इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई

2. देवनागरी लिपि में कौन-कौन भाषाएँ लिखी जाती हैं ?

उत्तर- देवनागरी लिपि में संस्कृत, हिन्दी, नेपाली, नेवारी, मराठी, गुजराती, मैथिली, भोजपुरी, मगधी आदि भाषाएँ लिखी जाती हैं।

3. लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है ?

उत्तर-लेखक ने गुप्त कालीन ब्राह्मी लिपि तथा बाद के सिद्धम् लिपियों से देवनागरी लिपि का संबंध बताया है।

4. नंदी नागरी किसे कहते हैं ? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है ?

उत्तर-नंदी नागरी देवनागरी को ही कहते हैं। महाराष्ट्र के राष्ट्रकूट राजाओं के समय नदिनगर (नांदेड) की लिपि होने के कारण यह नदिनागरी कहलाने लगी।

5. नागरी लिपि के आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें ।

उत्तर- नागरी लिपि के आरंभिक लेख दक्षिण भारत में राष्ट्रकूट वंश के राजा दतिदुर्ग का सामांगड दान पत्र 754 ई० का है ।

6. ब्राह्मी लिपि और सिद्धम् लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?

उत्तर- ब्राह्मी लिपि और सिद्धम् लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान है कि ब्राह्मी लिपि और सिद्धम् लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या ठोस तिकोन हैं लेकिन नागरी लिपि के अक्षरों पर लम्बी लकीरें अक्षरों की चौड़ाई के अनुकूल ऊपर जाती है।.

7. उत्तर भारत में किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं ?

उत्तर- उत्तर भारत में गुर्जर-प्रतिहार वंश क्रे शासक कन्नौज में शासन करते थे जिसमें मिहिर भोज, महेन्द्रपाल प्रसिद्ध राजा हुए । मिहिर भोज (840-881 ई०) तक शासन किया था। उसका ग्वालियर प्रशस्ति पत्र देवनागरी लिपि का लेख है।

8. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं ? लेखक इस संबंध में क्या बताता है?

उत्तर- नागरो लिपि को देवनागरी कहलाने के पक्ष में सप्रमाण सबूत तो नहीं है परन्तु नागरी शब्द नगर से ही सम्बन्ध रखता है। पटना जो कभी नगर कहा जाता था वहाँ के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) का व्यक्तिगत नाम "देव" था। सम्भवत: पटनो नगर देवनगर भी कहलाता होगा ।उता के आधार पर उत्तर भारत की लिपि को देवनागरी लिपि लोगों ने नाम रख दिया होगो। लेखक ने इस सम्बन्ध मे एक और बात बतायी है कि भारत के सभी शहर नरार कहलाते थे लेकिन काशी देवनगरी कहलाती थी अत। उसी का आधार लेकर उत्तर भारत की लिपि देवनागरी कहलाने लगी होगी।

9, नागरी की उत्त्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है ? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है ?

उत्तर- "नगरी" की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का कहना है कि नगर से ही नागरी शब्द बना है पटना को कभी नगर कहा जाता था अतः पटना से ही इस लिपि की उत्पत्ति होने के कारण यह नागरी लिपि नाम धारण किया हो ।

10. नागरी लिपि कब एक सार्वदेशिक लिपि थी ?

उत्तर- 8वीं सदी से लेकर 11 वीं सदी के बीच नागरी लिपि एक सार्वदेशिक लिपि थी।

11.नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म, होता है ? इस सम्बन्ध में लेखक क्या जानकारी देता है ?

उत्तर-नागरी लिपि के साथ-साथ भारतीय इतिहास एवं भारतीय संस्कृति के एक नए युग का जन्म होता है तंथा नागरी के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ भी जन्म देती हैं। इस सम्बन्ध में लेखक जानकारी देता है कि आठवीं-नौवीं सदी का आरंभिक हिन्दी साहित्य प्राप्त हुआ है तथा मराठी, गुजराती बंगाली भाषा के उपलब्ध लेख भी उसी काल के हैं।

12, गुर्जर प्रतिहार कौन थे ?

उत्तर- गुर्जर प्रतिहार विदेशी थे ये भारत आकार बस गये । 8वीं सदी के पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने शासन कायम किया। बाद में कन्नौज पर भी इनका अधिकार हो गया। गुर्जर-प्रतिहार राजाओं में मिहिर भोज और महेन्द्रपाल आदि महान राजाओं में गिने जाते थे ।

13. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें ।

उत्तर- 8वीं सदी (754 ई० ) का राष्ट्रिकूट राजा दंति दुर्ग का सामांगड दानपत्र ।
  9वीं सदी (850 ई०) का जैन गणितज्ञ महावीराचार्य की रचना " गणितसार संग्रह " तथा .840 से 88। ई० के बीच प्रतिहार शासक मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति संस्कृत में लिखा गया था ।
      10वीं सदी-दसवीं सदी में लिखित "दोहाकोश" ।
     11वीं सदी-शिलाहार शासक केशिदेव (प्रथम का शिलालेख (1012 ई० ) उपलब्ध है तथा (1020 ई०) का दानपत्र जो परमार वंश के विश्रुत राजा भोज का है ।
     (1028 ई०) का महमूद गजनवी द्वारा चलाया गया सिक्का पर नागरी लिपि में लिखा हुआ है।
     12वीं सदी-इस सदी के केरल शासकों के सिक्के पर नागरी लिपि में "वीर केरलस्य'" लिखा मिला है तथा श्रीलंका के पराक्रमबाहु, विजय बाहु आदि शासकों के सिक्के पर नागरी लिपि ही अंकित है ।
     13वीं सदी-इस सदी के देवगिरि के यादव राजाओं के ताम्रपात्र नागरी लिपि के हैं।
    14वीं सदी एवं 15वीं सदी में विजय नगर के शासकों का लेख नागरी लिपि में भी प्राप्त । इस दो सदियों में इस्लामिक शासक ने भी अपने सिवके पर नागरी लिपि का उपयोग किया है।

पाठ के आस-पास

1. भाषा और लिपि में क्या अन्तर है ? इस विषय पर शिक्षक से चर्चा करें।

उत्तर-भाषा-शब्द का अर्थ बोली होता है । लेकिन लिपि शब्द का अर्थ लिखावट की शैली होती है। भारत में अनेक भाषाएँ हैं जैसे-हिन्दी, संस्कृत प्राकृत, मैथिली, मगधी, भोजपुरी इत्यादि । लेकिन उपरोक्त सभी भाषाओं की लिपि देवनागरी है ।

2. देवनागरी लिपि की विशेषताओं के संबंध में जानकारी इकट्ठी करें और उसे बिन्दुवार पेश करें।

उत्तर-(1) देवनागरी लिपि सबसे प्राचीनतम लिपि है
(II) देवनागरी लिपि में साहित्य का सृजन जितना हुआ है अन्य लिंपि में नहीं ।
(lii) देवनागरी लिपि व्याकरण से परिष्कृत एवं सहज उच्चारित होने वाली है ।

3. अपनी परिचित अन्य लिपियों के साथ देवनागरीं की तुलना करते हुए एक संक्षिप्त लेख तैयार कीजिए और विद्यालय की गोष्ठी में ठसका पाठ कीजिए ।

उत्तर-हरमें उर्दू भाषा की अरबीक लिपि को देखने का सौभाग्य प्राप्त होता रहता है। अगर हम इसकी तुलना देवनागरी लिपि से करते हैं तो दोनों में बहुत अन्तर पाते हैं लेकिन हम पाते हैं। कि ध्वनि में बहुत कम अन्तर है परन्तु लिखावट में अन्तर पाते हैं। अरबीक लिपि मेँ बहुत वर्ण सामान्य अन्तर में लिखा जाता है । लेकिन देवनागरी लिपि में मात्र मूल ध्वनि (स्वर वर्ण) में ही कुछ अंश में समानता देखी जाती है। उसी प्रकार, रोमन लिपि में भी उच्चारण की दृष्टिकोण से कुछ कमजोरी हरें लगती है। अर्थात् बोलते हैं कुछ और लिखते हैं कुछ । उदांहरण में देवनागरी में"क" को रोमन में K लिखते हैं लेकिन "कमेस्ट्री" लिखने के लिए हमें Ch लिखना पड़ता
है। यह बात देव नागरी में भी है लेकिन हम स्वतंत्र हैं। उदाहरण में यमुना को जमुना अर्थात् य का ज भी उच्चारण में लाते हैं। यथार्थता तो यह है कि जमुना को यमुना ही उच्चारित करने में कोई आपत्ति नहीं है। परन्तु केमेस्ट्री को चेमस्ट्री बोलने में आपत्ति है ।

4. केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा अक्षरों का मानक रूप निर्धारित किया गया है। उसे ठपलब्ध करें और ठसमें किये गये सुघारों को चिह्नित करें ।

उत्तर- केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा अक्षरों के मानक रूप जो नि्धारित किये गरये हैं। उसमें कुछ सुधार को दर्शात हैं जो हिन्दी में ही मान्य हैं।
म् के लिए ( -)  और (,) के लिए (-)
न् के लिए (-) समास होने पर ही
ङ के लिए (-) यह मानक लिपि
ब् के लिए (:) का प्रयोग होता है।
हिन्दी में भी उपरोक्त मानक रूप सर्वत्र लागु नहीं होते ।

भाषा की बात

1. निम्नलिखित शब्दों से संज्ञा बनाएँ।

उत्तर- स्थिर = स्थिरता । अतिरिक्त अतिरिक्त स्मरणीय = स्मरण । दक्षिणी = दक्षिण । आसान = आसानी । यराक्रम = पराक्रमी । युगीन = युग ।

2, निम्नलिखित पदों के समास विग्रह करें ।

उत्तर-  
समासिक शब्द                                       समास विग्रह
तमिल-मलयालम्                                      मिल और मलयालम
रामसीय                                      राम और सीय
विद्यानुराग                                     विद्या में 
शिरोरेखा                                      शिर पर रेखा
हस्तलिपि                                      हस्त की लिपि
दोहा कोश                                      दोहा के कोश
पहले-पहले                                      सबसे पहले

3. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें-

उत्तर-  मत नहीं, न । सार्वदेशिक = सर्वदेशीय । अनुकरण = नकल, अनुगमन, अनुपालन, देखा- देखी। व्यवहार आचरण, रीति-रिवाज । शासक = राजा, शासनाध्यक्ष, प्रशासक ।

4, निम्नलिखित मिन्नार्थक शब्दों के अर्थ स्पप्ट करें-

(क) प्रत्न - प्राचीन, पुराना।       प्रयत्न = परिश्रम ।
(ख) लिपि = लिखावट की शैली      लिप्ति = जुड़ाव, लगाव ।
(ग) नागरी = एक प्रकार की लिपि, नगर की ।   नागरिक = नगर में रहने वाला, जनता ।
(घ) पट = वस्त्र।    पट्ट = उलटा, पृष्ठमाग, पदां।

शब्द निधि :

लिपि = ध्वनियों के लिखित चिह्न । नागरी = नगर की, शहर को | अनुकरण = नकल। ब्राह्मी = एक प्राचीन भारतीय लिपि जिससे नागरी आदि लिपियों का विकास हुआ। पोथियाँ = पुस्तकें, ग्रंथ । टकसांल = जहाँ सिक्के ढलते हैं। रामसीय = राते-सीता । अस्तित्व = पहचान,सत्ता । हस्तलिपि = हाथ की लिखावट । आद्यलेख = विद्याअत्यंत प्राचीन प्रारंभिक लेख । विद्यानुरोग = बिधा से प्रेम


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