5. धरती कब तक घूमेगी -साँवर दइया
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5. धरती कब तक घूमेगी -साँवर दइया |
बोध और अभ्यास
1. सीता अपने ही घर में क्यों घुटन महसूस करती है ?
उत्तर- सीता के पति के मरते ही घर की स्थिति दयनीय हो गई । भाइयों में आपसी भेद उत्पन्न हो गये ! वे केवलं अपनी पत्नी और संतान में ही सिमट गये हैं । माँ की देख-रेख एवं भरण-पोषण के लिए तीनों भाइयों ने एक-एक महीने का पाली बाँध लिया । सीता किसी भी बेटे के साथ रहती है तो अन्तर्मन से दुःखी ही रहती है । बहुओं की कड़वी. बातें उसे चुभती रहती हैं । अपनी ही संतान से आज वह विक्षुब्ध हो गई है । अपने मन की व्यथा किसी से वह कह नहीं सकती है । यही कारण है कि अपने ही घर में उसे घूटन महसूस होती है ।2. पाली बदलने पर अपने घर दादी माँ के खाने को लेकर बच्चे खुश होते हैं जबकि उनके माता-पिता नाखुश । बच्चे की खुशी और माता-पिता की नाखुशी के कारणों पर विचार करें।
उत्तर--बच्चे स्वच्छंद मन के होते हैं । परतंत्रता उन्हें कतई अच्छी नहीं लगती है । दादा-दादी, नाना-नानी से उन्हें. बहुत लगाव रहता है । अपनी पाली में दादी को पाकर वे खुशी से झूम उठते हैं । उनके माता-पिता भले ही मन में कलुष रखे हो किन्तु बच्चे ईर्ष्या, द्वेष आदि से कोरसों दूर रहते हैं । बच्चों के माता-पिता खर्च, सेवा आदि को लेकर मन ही मन व्यकित रहते हैं । यही कारण है कि पाली बदलने पर बच्चे खुश और उनके माता-पिता नाखुश हो जाते हैं ।3. इस समय उसकी आँखों के आगे न तो, अँधेरा था. और न ही उसे धरती और आकाश के बीच घुटन हुई । सप्रसंग व्याख्या करें
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों साँवर दुइया द्वारा रचित धरती कब तक घूमेगी' शीर्षक कहानी से संकलित है । प्रस्तुत संदर्भ उस समय को है जब सीमा के बेटे अपनी जिम्मेवारी से मुक्त होकर पचास रुपये प्रतिमाह खर्च देने के लिए निर्णय लेते हैं । रोटी क्या नहीं कराती है अर्थात् सब कुछ कराती है । रोटी के लिए ही अपनी संतान अपने माता-पिता को यूँ ही जीवनयापन करने के लिए छोड़ देते है । उन्हें माता-पिता को रोटी नही केवल अपनी संतान के लिए चिन्तर रहती है। सीता अपने बेटों के फैसलों से संतुष्ट हो या न हो रात्रि में घर से निकल जाती है । अब वह किसी की उपेक्षा की शिकार नहीं होगी । स्वतंत्र जीवन जीयेगी । खुली हवा में वह साँस लेगी । उसकी आँखों के सामने न अँधेरा था और न ही घुटन । वस्तुत: यही रचनाकार समाज में होनेवाले परिवर्तनों को विशेष रूप से चित्रित किया है । माता-पिता अपने ही संतान के बोझ बनते जा रहे हैं । संतान की ऐसी सीच निश्चय ही एक दिन समाज को नि:शेष कर लेगी ।4. सीता का चरित्र-चित्रण करें ।
उत्तर सीता जनक की पुत्री और राम की अधागिनी तो नहीं है किन्तु तीन बेटों की एक ऐस असहाय और विवश माँ है जो उनके लिए बोझ बन गई है । पति के मुरने के बाद ही घर में अन्तर्कलह उत्पन्न हो जाता है । आपसी वैमनस्य की परतें जमने लगती हैं । सीता इन सारी चीजों को देखकर भी मौन रह जाती है। बेटे और बहुओं के दुत्कार उसके हृदय को चोटिल कर देता है फिर भी वह कोई प्रुत्युत्तर नहीं देती है । पाली बाँधकर भरण-पोषण करनाले अपने बेटों से उसे कोई शिकायत नहीं है । अन्दर ही अन्दर घुटती रहती है । पति के मरने के बाद स्त्री तुच्छ और निराश्रय हो जाती है । सीता के साथ यह उदाहरण सटीक बैठता है । घरनी की तरह सबकुछ सहन करनेवाली माँ अपनी संतान का कभी बुरा नहीं चाहती है । सीता स्वाभिमानी है । स्वाभिमान की रक्षा करना वह भलीभाँति जानती है । खर्च देने के नाम पर रात्रि में घर से निकल जाती है । वह मेहनत-मजदूरी कर अपने जीवन का निर्वहन कर लेगी पर बेटों से वह खर्च नहीं लेगी ।.
5. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट करें ।
उत्तर- शीर्षक किसी भी रचना की पृष्ठभूमि है । शीर्षक की सार्थकता उसके आकर्षण में है तथा रचना की पूर्ण व्याख्या में होती है । शीर्षक रचना के मूल भाव का संवहन करता है। राजस्थानी भाषा के प्रमुख कहानीकार साँवर दइया द्वारा रचित 'धरती कब तक घूमेगी शीर्षक कहानी सामाजिक विडम्बनाओं को चित्रित करती है । धरती अपने किरण पर निरन्तर घूमती रहती है आखिर कब तक ? कभी न कभी तो यह अवश्य रुकेगी । माँ धरती की तरह अपनी यंतान के बोझ को सहन कर लेती हैं किन्तु संतान अपनी माँ का बोझ ढोने में असम्र्थ हो जाते है। इस कुहानी की प्रधान नायिका सीता है । पति के मरने के साथ ही वह तुच्छ और निराश्रयीतो जाती है । उसके बेटे उसे बोझ समझने लगते हैं । अपनी पत्नी और बेटे-बेटी में ही मशगूल एहने-वाले अपनी माँ को ही भूल जाते हैं । पाली बाँधकर उसके तीनों बेटे निश्चिन्त हो जाते हैं किन्तु इसमें भी वह बोझ लगती है । सक दिन तीनों बेटे मिलकर प्रतिमाह पचास रुपये देने का निर्णय लेते हैं । अपने बेटे के निर्णय से सीता मन-ही-मन विक्षुब्ध हो जाती है । उसे अब घुटन सहन नहीं हो पाता है । बेटों के इशारों पर वह कितने दिनों तक घुमेगी । अंततः एक दिन रात्रि में घर से निकल जाती है । अत:, इन दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और सटीक है ।
6. कहानी का सारांश प्रस्तुत करें ।
उत्तर--सॉवर दइया राजस्थानी भाषा के सफल कहानीकार हैं । इनकी कहानियों में राजस्थानी समाज के गहरे अर्थबोध एवं विविध घटनाओं का चित्रण मिलता है । 'धरती कब तुक घूमेगी' इस कहानी में कहानीकार ने सामाजिक मूल्यों एवं उसकी संवेदनाओं को प्रकट किया है। एक माँ अपनी संतान् के लिए सब कुछ अर्पण कर देती है किन्तु वही संतान उस माँ को बोझ समझने लगते हैं । माँ धरती की तरह सर्वसाध्या है । धरती पर तरह-तरह के जुल्म ढाये जाते हैं। फिर भी वह बदला नहीं लेती है । बेटे- बहुओं के द्वारा उपेक्षित होने पर भी माँ उनकी शिकायत नहीं करती है । अंतर्मन में सारी आशाओं को दफ़ना देती है । इस कहानी की प्रधान नायिका सीता अपने पति के मरने के बाद अशान्वित होती है कि उसको तीन बेटे हैं । कोई-न-कोई उसके जीवनरूपी नौकर को पार कर देगा किन्तु विधि के विधान को कौन टाल सकता है । माँ उनके लिए बोझ बन जाती है । पाली बाँधकर उसका भरण-पोषण करते हैं । एक दिन ऐसा भी समय आ जाता है कि ये नियम भी भँग हो जाते हैं । अब वे पचास-पचास रुपये प्रतिमास खर्च में दंगे । पहले से घुटन भरे जीवन जीवनेवाली सीता अपने बेटों के निर्णय से विक्षुब्ध हो जाती है । अपना ही उसे पराया लगने लगता है । तुच्छ और निराश्रयी सीता एक दिन रात्रि में चुपके से घर से निकल जाती है । वह मेहनत-मजदूरी कर अपने जीवन का निर्वहन कर लेगी किन्तु अपने बेटों पर बोझ नहीं बनेगी । वस्तुत: कुहानीकार यहा बताना चाहता है कि उन बेटों को भी अपनी संतानें हैं किन्तुशायद वे नहीं जानते हैं कि उनको भो यही गति होनेवाली है जो वे अपनी मां की कर रहे हैं। आज का समाज इसी विडम्बनाओं के साथ जीनें के लिए विवश है ।
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