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3. अति सूधो सनेह को मारग है - घनानद की कविता और प्रश्न के उत्तर

3. अति सूधो सनेह को मारग है - घनानद

कवि परिचय-

रीति काल के रीति मुक्त काव्यधारा के सिरमौर, "प्रेम की पीर" के कवि घनानंद का जन्म 1689 ई. के आस-पास दिल्ली में हुआ था । वे दिल्ली के तत्कालीन मुगल बादशाह मोहम्मद शाह हमले के यहाँ मीरमुंशी का काम करते थे। वे अच्छे गायक और श्रेष्ठ कवि थे। सुना जाता है कि सुजान नामक नर्तकी से इनको प्यार था । कुछ कारण से सुजान के प्रति उनकी विरक्ति हो गई। विराग होने पर वे दिल्ली छोड़कर वृंदावन चले गये। वहाँ वैष्णव बनकर काव्य रचना करने लगे।

      1739 ई. में जब लुटेरा नादिरशाह का दिल्ली पर आक्रमण हुआ तो उसके सैनिकों ने वृंदावन पर भी आक्रमण किया । घनानंद भी पकड़े गये । सैनिकों ने उनसे सोना माँगा तो घनानन्द ने सिपाहियों के हाथ पर धूल रख दिया। गुस्सा में आकर सैनिकों ने इनको मार दिया।

घनानन्द के प्रमुख ग्रन्थ हैं-

 "सुजान सागर" "विरह लीला", "रस केलि बल्ली""घन आनंद" आदि घनानंद की काव्य रचना सवैये या घनाक्षरी में हैं तथा इनके काव्यों में प्रेम-राग, प्रेम-विरह दोनों दिखाई पड़ते हैं। इनकी भाषा ब्रजभाषा है । 

प्रश्न सूचि (toc)


अति सूधो सनेह को मारग है।
(प्रेम का मार्ग अति सरल है।)

अति सूधो सनेह को मारग है। पद-परिचय–

इस सवैये में प्रेम के मार्ग को सरल बताते हुए कहा है कि इसमें कोई खर्च नहीं लेकिन सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। 

अति सूधो सनेह को मारग है। भावार्थ -

प्रेम का मार्ग अत्यन्त सरल मार्ग है। जिस मार्ग में चतुराई का टेढ़ी चाल की कोई जगह नहीं है। इस मार्ग में सच्चाई का भी अभिमान ठिठक जाता है। इसमें कपटी लोग अपना स्थान नहीं बना पाते हैं। घनानन्द का कहना है कि हे प्यारे सज्जन, इस मार्ग के समान दूसरा कोई मार्ग नहीं है। इस मार्ग का अनुकरण करने वाले का कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ हो जाती है।

मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।
मेरे आँसुओं को ही लेकर बरस जाओ।

मो अँसुवानिहिं लै बरसौ। पद परिचय-

 इस सवैये में कवि घनानंद ने मेघ को परोपकारी बताकर आग्रह करता है कि मेरे हृदय की पीड़ा को सज्जन लोगों के घर तक पहुँचा दो।

मो अँसुवानिहिं लै बरसौ। भावार्थ-

हे मेघ ! परजन्य नाम तुम्हारा सही है क्योंकि परोपकार के लिए ही देह धारण कर घूमते हो । समुद्र जल को भी तुम अमृत जैसा बनाकर अपने रसयुक्त घनानंद का कहना है कि तुम जीवनदायक हो, कुछ मेरे हृदय की पीड़ा को भी स्पर्श करो। हे विश्वासी किसी भी समय मेरी पीड़ारूपी आँसुओं को लेकर सज्जन लोगों के आँगन में बरस जाओ।

अति सूधो सनेह को मारग है बोध और अभ्यास

अति सूधो सनेह को मारग है कविता के साथ

1. कवि प्रेम मार्ग को "अति सूघो" क्यों कहता है ? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?

उत्तर- कवि प्रेम मार्ग को अति सूधो (अत्यन्त शुद्ध सरल) इसलिए कहा है क्योंकि इस मार्ग पर चलकर मनुष्य बिना खर्च किये हुए सब कुछ पा सकता है। इस मार्ग की विशेषता है कि इस मार्ग में सत्य का भी स्वाभिमान समाप्त हो जाता है तथा चतुराई का भी इस मार्ग में कोई स्थान नहीं रहता है।

2. "मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं" से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर- 'मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं" से कवि घनानंद का अभिप्राय यह है कि "प्रेम मार्ग" ऐसा मार्ग है जिस पर चलने वाले पथिक को कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ किया जा सकता है। यहाँ मन (40 किलो) और छटॉक (कनमा) जो उस समय मन माप का सबसे बड़ा और छटाँक सबसे छोटा परिमाण माना जाता था।

3. द्वितीय छंद किसे संबोधित है और क्यों?

उत्तर- द्वितीय छंद में मेघ को संबोधित किया गया है क्योंकि परजन्य परोपकार हेतु जो जन्म लिया हो कहलाकर मेघ अपने नाम की यथार्थता साबित करने के लिए परोपकार के लिए घूम-घूमकर कर बरसता है।

4. परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- परहित के लिए ही देह मेघ धारण करता है। मेघ परोपकारी होता है। घूम-घूमकर लोक हित के लिए बरसता है। इसलिए मेघ का एक नाम "परजन्य" भी है

5. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुंचाना चाहते हैं और क्यों ?

उत्तर-  कवि अपने आँसुओं को सज्जन लोगों के आँगन तक पहुँचाना चाहता है क्योंकि सज्जन जन ही कवि को पीड़ा का अनुभव कर सकते हैं, कोई दुष्ट नहीं। इसीलिए कवि की आकांक्षा है कि मेरी पीड़ा सज्जन के आंगन तक पहुँचाकर परोपकारी मेघ मेरी पीड़ा को कम करने में मदद देगा।

अति सूधो सनेह को मारग है व्याख्या करें 

(क) यहाँ एक ते दूसरौं आँक नहीं। व्याख्या करें

उत्तर- प्रस्तुत सवैये का अंश हमारे पाठ्यपुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "अति सूधो स्नेह को मारग है" पद से लिया गया है जिसके रचयिता घनानंद हैं । इस पद में कवि ने "प्रेम मार्ग" को सुगम सरल, पवित्र कहते हुए कहा है कि यहाँ एक तें दूसरौ आँक नहीं। अर्थात् प्रेम मार्ग के समान कोई दूसरा मार्ग नहीं है। प्रेम मार्ग ही अद्वितीय मार्ग है।

(ख) कछू मेरियो पीर हिए परसौ। व्याख्या करें 

उत्तर-  प्रस्तुत सवैये का अंश हमारे पाठ्यपुस्तक “गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के “मो असुवानिहिं लै बरसौ" पद से लिया गया है जिसके रचयिता प्रेममार्गी कवि 'घनानंद" है। इस पद में मेघ को परोपकारी कहते हुए मेघ से कवि के आँसुओं को परोपकार हेतु लेकर सज्जन के आँगन में बरसाने का आग्रह करता है। इस पद्यांश में कवि की इच्छा है कि जीवनदायक मेघ हमारे हृदय की पीड़ा को भी अपने स्पर्श से सुखकारी बना देगा। क्योंकि मेघ का कार्य ही है दूसरों को सुख पहुँचाना।

अति सूधो सनेह को मारग है भाषा की बात

1. निम्नांकित शब्द कविता में संज्ञा अथवा विशेषण के रूप में प्रयुक्त हैं। इनके प्रकार बताएँ

सूधो-विशेषण । मारग-संज्ञा । नेकु-संज्ञा । वाँक विशेषण। कपटी संज्ञा । निसाँक- विशेषण । पाटी-संज्ञा । जथारथ–संज्ञा । जीवनदायक विशेषण । पीर-संज्ञा । हियें-संज्ञा ।

कवि ने

2. कविता में प्रयुक्त अव्यय पदों का चयन करें और उनका अर्थ भी बताएँ ।

उत्तर- 

अव्यय  -   अर्थ      

अति = अधिक

जहाँ  =  जिस जगह 

तहाँ  =  उस जगह

यहाँ  =  इस जगह 

कछू =  कुछ (थोड़ा)

3. निम्नलिखित के कारक स्पष्ट करें-

स्नेह को मारग = सम्बन्ध कारक । प्यारे सुजान - कर्मधारय । मेरियौ पीर = सम्बन्ध कारक । हिये - सम्बन्ध कारक । अँसुवानिहिं कर्म कारक । मो = सम्बन्ध कारक ।

अति सूधो सनेह को मारग है शब्द निधि :

नेकु - तनिक भी। सयानप = चतुराई । बाँक = टेढ़ापन । आपन पौ = अहंकार, अभिमान । झुझुकै = झिझकते हैं। निसाँक = शंकामुक्त । आँक = अंक, चिह्न । परजन्य = बादल । सुधा = अमृत । सरसौ = रस बरसाओ। परसौ - स्पर्श करो। बिसासी = विश्वासी । मन = माप-तौल का एक पैमाना । छटाँक = माप-तौल का एक छोटा पैमाना ।

 

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