2. प्रेम अयनि श्री राधिका - रसखान
कवि परिचय-
कृष्ण भक्त, मुसलमान संतों में "रसखान" अग्रणी हैं। "रसखान" का जन्म दिल्ली के पठान वंश के राजघराने में हुआ था । बाबर के आक्रमण से पठान वंश का अंत हो गया तथा दिल्ली पर मुगलवंश का शासन कायम हो गया । पराजित राजवंश के रसखान दिल्ली से भागकर व्रज भूमि आकर श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो गये। वे अपना गुरु गोस्वामी विट्ठलनाथ को माना। जिन्होंने रसखान को पुष्टि मार्ग की दीक्षा दी।
रसखान के रचित ग्रन्थ हैं
"प्रेमवाटिका" और "सुजान रसखान"। "प्रेम वाटिका" का रचना काल 1610 माना गया है जिसमें कृष्ण भक्ति पर आधारित दोहे, सवैये आदि उपलब्ध हैं।
प्रेम अयनि श्री राधिका पद परिचय -
इस दोहे में रसखान भगवान श्रीकृष्ण और राधिका जी के युगल स्वरूप को प्रेम का खजाना कहा है । अर्थात् राधा कृष्ण के युगल स्वरूप की जो भक्ति करता है उसे भगवान श्रीकृष्ण अपने रंग में रंगकर प्रेममय कर देते हैं।
प्रेम-अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नँदवंद ।
मन पावन चित चोर, पलक ओर नाहिं करिसकौं - भावार्थ
श्री राधिका प्रेम के खजाना है तो श्रीकृष्ण उनके प्रेम रंग में रंगा प्रेमी हैं। दोनों एक ही प्रेम वाटिका के दो नायक (माली-मालीन) है। मोहन के रूप सौन्दर्य को देखकर रसखान की ये आँखें अपने वश में नहीं रहा अर्थात् वरवक्त उन्हीं के प्रेममय स्वरूप के प्रति ये आँखें युगल स्वरूप पर टिकी रहती हैं उसी प्रकार जैसे वाण को खींचते धनुष से छुटकर चला जाता है । मेरे मनरूपी माणिक्य (रल) देखकर चितचोर कहलाने वाले नन्द के नन्दन चुरा लिए । जब
मैं बिना मन वाला हो गया तो क्या कर सकता हूँ। मैं तो श्रीकृष्ण और राधिका के प्रेमपाश में फंस गया हूँ। हे प्रिय नन्दकिशोर जिस दिन से आपके स्वरूप का दर्शन इन आँखों को हुआ है, उस दिन से मेरा मन पवित्र हो गया । हे चितचोर मैं अपने पलकों को आपके छवि दर्शन से अलग न कर सकूँ ऐसी मेरी इच्छा है।
मैं बिना मन वाला हो गया तो क्या कर सकता हूँ। मैं तो श्रीकृष्ण और राधिका के प्रेमपाश में फंस गया हूँ। हे प्रिय नन्दकिशोर जिस दिन से आपके स्वरूप का दर्शन इन आँखों को हुआ है, उस दिन से मेरा मन पवित्र हो गया । हे चितचोर मैं अपने पलकों को आपके छवि दर्शन से अलग न कर सकूँ ऐसी मेरी इच्छा है।
करील के कुंजन ऊपर वारौं पद परिचय
सवैये में प्रस्तुत पद में रसखान श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैभार हैं।
करील के कुंजन ऊपर वारौं भावार्थ
जिन्होंने छोटी लाठी, कम्बल पर तीन लोक का राज त्याग दिये तथा आठो सिद्धिऔर नवनिधियों के सुख को भी नन्द के गाय चराने के पीछे भूल गये हों। उस श्रीकृष्ण को देखने के लिए ये आँखें कब (बहुत दिनों) से ब्रज के वन, उपवनों और तालाब को निहार (देख) रहा है। उनके दर्शन हेतु इन्द्र के करोड़ों स्वर्ग को प्रेमवाटिका स्वरूप
भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर बलिदान कर दूं। ऐसी मेरी अभिलाषा है।
भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर बलिदान कर दूं। ऐसी मेरी अभिलाषा है।
प्रेम आयनी श्री राधिका बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कवि ने माली-मालिन किन्हें और क्यों कहा है?
उत्तर- कवि रसखान ने प्रेमवाटिका के माली श्रीकृष्ण को तथा मालिन राधिका रानी को कहा है। क्योंकि दोनों प्रेम रूपी वाटिका के संरक्षक हैं। जैसे माली-मालिन मिलकर फूल के बगीचा को सिंचते हैं जिससे फूल खिलते हैं उसी प्रकार भगवान श्री कृष्ण और राधिका प्रेमरूपी वाटिका को सिंचकर प्रेम को पुंष्ट (विकसित) करते हैं।2. द्वितीय दोहे का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर- दूसरा दोहा (सवैये) में कवि रसखान की अनुपम भक्ति देखने को मिलती है जिसमें कवि श्रीकृष्ण की भक्ति पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं। सौन्दर्य की दृष्टि से भी यह सवैये अनुपम हैं । शब्दालंकार के प्रयोग से यह दोहा आकर्षक बन गया है।3, कृष्ण को चोर क्यों कहा गया है ? कवि का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर- चितचोर कहलाने वाले भगवान श्रीकृष्णा अपने भक्तों के मन को शीघ्र ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं इसलिए कवि ने उन्हें चोर कहा है। अभिप्राय यह है कि मनुष्य जब श्रीकृष्ण की भक्ति की ओर मुखरित होता है तो उसका मन श्रीकृष्ण की ओर स्वयं खिंच जाता है इसलिए वे चित्तचोर कहलाते हैं।4. सवैये में कवि की कैसी आकांक्षा प्रकट होती है ? भावार्थ बताते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर- द्वितीय दोहे में कवि ने सवैये का प्रयोग किया है जिसमें कवि रसखान ने आकांक्षा व्यक्त की है कि अगर श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए मुझे करोड़ों स्वर्ग-सुख को त्यागना पड़े तो त्याग सकता हूँ।प्रेम आयनी श्री राधिका व्याख्या करें
5. (क) पावन चित्त चोर, पलक ओर नहि करि सकौं । व्याख्या करें—
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्यपुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "प्रेम-अयनि श्री राधिका" पाठ से लिया गया है जिसके कवि रसखान हैं। जिसमें कवि ने राधा कृष्ण के युगल स्वरूप को प्रेम का खान कहकर अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति की है। इस पंक्ति में रसखान ने भगवान श्रीकृष्ण को मन पावन करने वाला तथा चित चुराने वाला (चित्तचोर) कहते हुए कहा है कि एक क्षण के लिए भी मैं उनसे अपने को अलग नहीं कर सकता हूँ।(ख) रसखानि कबौं इन आँखिन सौ बज के बनबाग तडाग निहारौं । व्याख्या करें—
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के "करील कुंजन ऊपर वारौं" पाठ से लिया गया है जो रसखान की रचना है। इस सवैये में कवि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और दर्शन प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं। इसी आकांक्षा में कवि कहते हैं आपका भक्त रसखान आपके दर्शन हेतु कब से (बहुत दिनों से) ब्रज के वन, बाग और तडाग की ओर अपनी आँखें लगाये हुए है।ज६
है।
लग
1.
गव
1. समास-निर्देश करते हुए निम्नलिखित पदों का विग्रह करें-
उत्तर-पद विग्रह समास के नाम
प्रेम-अयनि प्रेम के अयनि तत्पुरुष समास
प्रेम बरन प्रेम का बरन तत्पुरुष समास
नंद नंद नंद के नन्द तत्पुरुष समास
प्रेमवाटिका प्रेम की वाटिका तत्पुरुष समास
माली-मालिन माली और मालिन द्वन्द्व समास
रसखानि रस के खानि तत्पुरुष समास
चितचोर चित्त के चोर तत्पुरुष समास
मनमानिक माणिक जैसा मन कर्मधारय समास
वेमन बिना मन का नज् समास
नवोनिधि नव निधि का समूह द्विगु समास
आठहुँ सिद्धि आठ सिद्धि का समूह द्विगु समास
बन बाग वन और बाग द्वन्द्व समास
तिहूँपुर तीन पुरों का समाहार द्विगु समास
2. निम्नलिखित के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखें-
राधिका = राधा, कृष्ण-प्रिया, रास नायिका । नँद नंद = कृष्ण, चित्त चोर, वासुदेवनैन = आँख, नेत्र, दृष्टि । सर =वाण, तीर।
आँख = नेत्र, चक्षु, दृष्टि ।
कुंज = वाटिका, उपवन, बाग।
कलघौत = इन्द्र, देवराज, बज्रपाणी ।
3. कविता से क्रिया रूपों का चयन करते हुए उनके मूल रूप को स्पष्ट करें-
उत्तर-लखि = लख (देखना) । आवत आव (आना) । जाहिं = जा (जाना) । लै गयो = ले जाना। करूँ = कर (करना) । लग्यौ = लग (लगना) । सकौं = शक् (सकना) । डारौ = डाल (डालना) । चराई = चर (चरना) । निहारौ = निहारना । वारौं = वारण (त्याग, न्योछावर)।प्रेम आयनी श्री राधिका शब्द निधि:
अयनि = गृह, खजाना । बरन = वर्ण, रंग । दृग = आँख । अँचे = खिचे । सर = वाण ।मानिक = (माणिक्य) रत्न विशेष । चितै = देखकर । लकुटी = छोटी लाठी । कामरिया = कंबल,
कंबली । तिहूँपुर = तीनों लोक । बिसारौं = विस्मृत कर दूँ, भुला दूँ। तड़ाग = तालाब । कोटिक
= करोड़ों । कलघौत = इन्द्र। वारौं = न्योछावर कर दूं। कुंजन = बगीचा (कुंज का बहुवचन)।