6. जनतंत्र का जन्म -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर कवि परिचय-
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" का जन्म 23 सितम्बर, 1908 ई. में सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ था । माता का नाम मनरूप देवी और पिता का नाम रवि सिंह था। प्रारंभिक शिक्षा गाँव आस-पास के स्कूल में 1928 ई० में रेलवे हाईस्कूल से मैट्रिक तथा पटना कॉलेज से 1932 ई० में बी० ए० इतिहास (ऑनर्स) किया । अध्ययन समाप्त होने पर एच. ई. स्कूलं बरबीघा में प्रधानाध्यापक, जनसंपर्क विभाग में सब-रजिस्ट्रार और सब-डायरेक्टर पुनः बिहार-विश्व विद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर तथा भागलपुर विश्वविद्यालय में उप कुलपति पद पर रहे। वे राज्य सभा के सांसद भी रहे। 24 अप्रैल, 1974 में उनका निधन हो गया ।
दिनकर जी हाई स्कूल जीवन काल से ही कविता लेखन आरम्भ कर दिया था लेकिन 1932 के बाद उनकी कृतियाँ समाज के सामने आने लगी । वे पद्य और गद्य के माध्यम से 'हिन्दी साहित्य के भंडार को बढ़ाया। इनके लेखन का आधार राष्ट्रीय, सामाजिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रहा।
रामधारी सिंह दिनकर के प्रमुख काव्य (पद्य) कृतियाँ हैं-
"प्रणभंग" "रेणुका", "हुंकार", "रसवंती", "कुरुक्षेत्र", "रश्मिरथी' ", "उर्वसी", "परशुराम की प्रतीक्षा" "हरि को हरिनाम" आदि गद्य कृतियों में "मिट्टी की ओर", "अर्धनारीश्वर", "संस्कृति के चार अध्याय", "काव्य की भूमिका", "वट पीपल", "शुद्ध कविता की खोज", "दिनकर की डायरी' इत्यादि ।
"उर्वशी" पर ज्ञान पीठ एवं "संस्कृति के चार अध्याय" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत हुए।
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6. जनतंत्र का जन्म -रामधारी सिंह दिनकर |
जनतंत्र का जन्म कविता परिचय–
'जनतंत्र' का जन्म शीर्षक कविता "हुंकार" से उद्धृत है। इस पाठ में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। भारत सदियों से गुलामी के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की है। भारत में जनतंत्र की स्थापना हुई जिसमें जनता ही राजा बनता है तथा राजनायक के भगवान या भाग्य विधाता जनता होती है इत्यादि जनतंत्र के महत्व को दर्शाया गया है।
सक्षेप में सारांश-
सदियों से गुलाम भारत स्वतंत्र हो गया । जो भारतीय तुच्छ माने जाते थे वे अब ताज पहनने को तैयार हैं। उन्हें राह दो, समय के रथ के पहिए की आवाज सुनो और सिंहासन खाली करो अब सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिए जनता स्वयं आ रही है।
जनता जिसको अबोध, मूक मिट्टी की मूरतें माना जा रहा था, जो सब कुछ सहने वाली, भयंकर तकलीफ काल में भी मुख नहीं खोलने वाली वही जनता तैयार है। जिसने बड़ी-बड़ी वेदना सहती रही है। सब ठीक है जनता सहती आ रही है लेकिन जनमत का भी कुछ अर्थ होता है । जनता को राजनायक लोग फूल मानते आ रहे थे जब चाहो सजा लो या जब चाहे उतार दो ।
जनता को दूध मुंही बच्ची की तरह राजनायक लोग समझते आ रहे थे जिसे बहलाने के लिए कुछ देकर बहला दिया जाता था।
लेकिन जनता जब कोप से व्याकुल होकर भौंह चढ़ाती है तो धरती डोलने लगती है। आँधी आ जाती है। अब समय जनता का आ गया है उन्हें रास्ता दो, समय की चक्र को घूमने की आवाज सुनो, सिंहासन खाली करो, जनता अब स्वयं राज्य सत्ता संभालने आ रही है।
जनता की हुंकार से महलों की नींव भी उखड़ जाती है। जनता की साँस (आह) में ताज भी उड़ जाता है। जनता की राह कोई नहीं रोक सकता है। समय में भी वह शक्ति नहीं है। जनता जिधर जाती है समय भी उधर चल पड़ती है।
वर्षों, सदियों या हजारों साल की पराधीनता का अन्धकार समाप्त हो गया। आकाश का द्वार भी दहक जाता है जब जनता स्वतंत्रता का स्वप्न देखता है तो अन्धकार का भी वक्ष चीर देता है। भारत में विराठ जनतंत्र की स्थापना हो गई है। 33 करोड़ जनता को सिंहासन मिलने वाला है जो जनता के हित में होगा । आज प्रजा का अभिषेक होगा। तैतीस करोड़ जनता भारत का राजा बनेगा।
कवि कहता है आज का देवता जनता होता है। जो मंदिर, राजमहल, तहखाना आदि में नहीं कुदाल और हल का शासन पर अधिकार होने वाला है जो धूसरित सोने से श्रृंगार सजा लेती है। जनतंत्र का समय आ गया । जनता को राह दो, समय के रथ का घर्धर की आवाज सुनो, सिंहासन खाली करो क्योंकि अब जनता स्वयं अपना सत्ता संभालने आ रही है।
जनतंत्र का जन्म बोध और अभ्यास
कविता के साथ
1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर- पराधीनता की समाप्ति और स्वाधीनता की प्राप्ति कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद है अर्थात् जनता समय आया अपना जनतंत्र को कायम करने का।
2. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है?
उत्तर- कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन अबोध, मूक मिट्टी की मूरत के रूप में किया है जो सब कुछ सहती आ रही है। गहन वेदना में भी जो भूख नहीं खोल पाई।
3. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है।और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है?
उत्तर- कवि के अनुसार राजनायक लोगों की दृष्टि में जन फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह । क्योंकि अब तक राजनायक सोचते आ रहे थे कि जनता पर राजा का अधिकार होता है। जब चाहो उससे अपना राजसिंहासन सजा लो । अथवा दुधमुंही बच्ची की तरह जनता को कुछ देकरउनका मन बहलाकर राज्य का उपभोग कर लो। जिसका प्रतिवाद कवि ने जनता को भगवान कहकर किया है जो सड़क पर पत्थर तोड़ते या खेतों में काम करते मिलेंगे।
4. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है?
उत्तर- कवि जनता के स्वप्न का चित्र अजय जो अन्धकार का भी वक्ष-स्थल चीर डाले, इस प्रकार उमड़ता हुआ खींचा है।
5. विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है ? कवि किनके सिर पर मुकुट धरने की बात करता है और क्यों ?
उत्तर- भारत के विराट जनतंत्र का स्वरूप 33 करोड़ जनता के हित का है। कवि 33 करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है क्योंकि प्रजातंत्र में प्रजा ही राजा होता है
6. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे?
उत्तर- कवि की दृष्टि में आज का देवता जनता है जो सड़क पर गिट्टी तोड़ते या खेल-खलिहानों में काम करते मिलेंगे।
7. कविता का मूल भाव क्या है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कविता का संक्षेप में सारांश देखें।
8. जनतंत्र का जन्म व्याख्या करें-
(क) सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है। व्याख्या करें
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पथ) खण्ड के "जनतंत्र का जन्म" शीर्षक कविता से लिया गया है जिसके कवि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी है। भारत सदियों के बाद स्वाधीन हुआ स्वतंत्रता पाकर जनतंत्र की स्थापना के लिए भारतीय लोग प्रयासरत हैं। मानो सदियों की ठंडी बुझी राख से आग पुनः सुगबुगा उठी है तथा मिट्टी भी सोने की ताज पहनकर इठला रही हो ।
(ख) हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती, साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता. है, जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ? वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
उत्तर- प्रस्तुत पक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के काव्य (पद्य) खण्ड के का जन्म" शीर्षक कविता से ली गयी है जिसके रचयिता राष्ट्रकवि "रामधारी सिंह दिनकर" जी हैं। इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने जनता के बल का महत्व दर्शाया है। जनता की हुँकार से राजाओं का महल ढह जाता है। जनता की साँस से राज का ताज उड़ जाता है। जनता की राह को समय भी नहीं रोक सकता। जनता जिधर जाती है समय भी उसी ओर मुड़ जाता है।
जनतंत्र का जन्म भाषा की बात
1. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें-
उत्तर- सदी = शताब्दी । राख = भस्म । ताज = मुकुट । सिंहासन = राजगद्दी । कसक = कमजोरी । दर्द = पीड़ा । कसम = कमी । जनमत = जन-विचार । फूल - कुसुम । भूडोल = भूकम्प । भृकुटी = मैंह। काल = समय । तिमिर = अन्धकार । नाद = घोष, आवाज । रांज प्रसाद = राजमहल । मंदिर = देवालय।
2. निम्नांकित के लिंग-निर्णय करें-
ताव = पु० । दर्द - स्त्री । वेदना = स्त्री० । कसम = स्त्री० । हुँकार = । बवंडर = पुः। गवाक्ष = पु० । जगत = पु० । अभिषेक = पु० । शृंगार = स्त्री० । प्रजा - स्त्री ।
3. कविता से सामासिक पद चुनें एवं उनके समास निर्दिष्ट करें।
उत्तर- जनतंत्र = तत्पुरुष समास । घर्घर-नाद = तत्पुरुष समास । सिंहासन = मध्यमद लोपी समास । जाड़े-पाले = द्वन्द्व समास । अंग-अंग = द्वन्द्व समास । जनमत = तत्पुरुष समास । जन्तर-मन्तर = द्वन्द्व समास । चार खिलौनों = द्विगु समास । कोपाकुल = तत्पुरुष समास । राज प्रासादों = तत्पुरुष समास |
जनतंत्र का जन्म शब्द निधि:
नाद = स्वर, ध्वनि । गूढ़ = रहस्यपूर्ण । भूडोल = धरती का हिलना-डोलना, भूकंप । कोपाकुल = क्रोध से बेचैन । ताज = मुकुट । अब्द = वर्ष, साल । गवाक्ष = बड़ी खिड़की, दरीचा । तिमिर = अंधकार । राजदंड = राज्याधिकार, शासन करने का अधिकार । धूसरता = मटमैलापन ।