लेखक परिचय-
हिन्दी कथा साहित्य के सुप्रतिष्ठित कहानीकार अमरकान्त का जन्म जुलाई 1925 ई० में नागर, बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।हाई स्कूल की परीक्षा बलिया से पास कर इंटरमीडिएट की पढ़ाई हेतु इलाहाबाद पेहुँचे, परन्तु 1942 ई० के स्वाधीनता संग्राम में सहयोग देने के कारण पढ़ाई बंद हो गई । पुनः 1946 ई० में वलिया के सतीश चन्द्र कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर 1947 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण होकर 1948 में आगरा के दैनिक पत्र "सैनिक" के सम्पादकीय विभाग में नौकरी की। आगरा में ही वे "प्रगतिशील लेखक संघ में सम्मलित होकर कहानी लेखन आरम्भ किया तथा इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादकीय विभाग से जुड़े रहे। कथा लेखन के लिए अमरकान्त को "साहित्यं अकादमी
पुरस्कार" भी मिला। इनकी कहानी "डिप्टी कलक्टरी" भी पुरस्कृत हुई थी ।
अमरकान्त की कहानियों में मध्यमवर्गीय लोगों के जीवन यथार्थता का सम्यक् चित्रण देखने को मिलता है इनकी प्रमुख, कहानी हैं "दोपहर का भोजन", "डिप्टी कलक्टरी", 'जिंदगी और जोंक", "देश के लोग", "कुहासा""मौत के नगर", " मित्र- मिलन", "हत्यारे" इत्यादि । "सूखा पत्ता", "आकाशपक्षी" "काले उजले दिन", "सुखर्जीवी'"', बीच की दीवार, "ग्राम सेविका" आदि प्रसिद्ध उपन्यास तथा "वानर सेना" नामक बाल उपन्यास से हिन्दी साहित्य के भंडार भरने में अमरकान्त जी का सहयोग बहुमूल्य है।
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6. बहादुर - अमरकान्त |
6. बहादुर - अमरकान्त
बहादुर कहानी परिचय-
इस कहानी का नायक "बहादुर" लेखक का नौकर है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों की यथार्थता को दर्शाया है। मध्यम वर्ग के परिवार में नौकर के आने पर प्रसन्नता होती है लेकिन बाद में नौकरों के प्रति बेरहम नजर आते हैं। जब नौकर भाग जाता है तो अपनी बेरहमी पर रोते दिखते हैं।डिप्टी कलक्टरी कहानी का सारांश-
"बहादुर" का पूरा नाम दिल बहादुर है। भारत-नेपाल सीमा प्रान्तीय 12-13 वर्षीय बहादुर ठिगना कद, चकइठ शरीर, गोरा रंग और चपटा मुँह वाला है। गले में रूमाल बँधा, सफेद पैन्ट, सफेद कमीज और भूरे रंग का जूता पहनकर वह घर से भागकर लेखक के घर भारत आ गया था।जिसकी कहानी लेखक के साले साहब मौखिक सुनाया- दिल बहादुर ग्रामीण है। पिता युद्ध में शहीद हो चुके हैं। माँ घर का काम-काज संभाल रही है। बहादुर को माँ बहुत मारतो थी क्योंकि वह दिनभर जंगल में भटकते फिरता था जब भूख सतावी तो घर आकर खा लिया करता था। माँ चाहती थी कि बेटा घर के काम-काज में हाथ बटावे । लेकिन यह उससे सहमत नहीं था। माता बहादुर से चिढ़ी रहा करती, डॉटती, फटकारती और मारती भी थी । बहादुर भी अपना गुस्सा माँ द्वारा पालित भैंस पर उतारा करता था। यह भैंस को खूब पीटता था। एक रोज माँ का आदेश पालन करते हुए वह भैंस चराने जंगल जाता है तथा वहाँ भैंस को खूब पीटता है। भैंस मार खाकर भागती हुई बहादुर के गुसैल माँ के पास आ जाती है। भैंस को देखते ही वह समझ गई कि भैंस पीटाकर भागी आई है। वह गुस्सा से तमककर डंडा लेकर जंगल में सई त श्रा अनुमा से (जितना डंडा भैंस को मारा गया होगा) दुगुना डंडा मारकर बेहोश कर दी तथा बहाशी अवस्था ही जंगल में छोड़कर घर आ गई। दिल बहादुर भर रात जंगल में ही रहा । सुबह म वह घा चुप्रक से घुसा तथा कुछ रुपवे चुराकर अपने वतन को छांड़ लेखक के घर आ गया था ।
" बहादुर" को लाने वाले साले साहब ही थे ।
लेखक के भाईयों के घर नौकर थे जिसके कारण भाभियों का दिन आरम से कटता थ लेकिन नौकर के अभाव में लेखक की पत्नी निर्मला बीमारी अवस्था में भी दिन-सत काम में लग रहती दिखती थी।
लेखक नौकर "बहादुर" को रख लेते हैं। नौकर के प्रति उदारता और स्नेह से लिप्त होकर बहादुर अपने ही परिवार में ढाल लेता है। निर्मला सहित लेखक के पुत्र किशोर क्ा सास कार्य नह हँसते-हँसते कर लिया करता था। वह हँसोर स्वभाव वाला था ही । सबको उसके प्रति तशा अपने प्रति गौरव है। क्योंकि लेखक भी लोगों के बीच कहते नजर आये कि जिसको कलेज़ा होता है वही नौकर रख सकता है। मैं तो नौकर को परिवार की तरह रखता हूँ। निर्ला के स्वर से] भी नौकर के प्रति समता उदारता की बातें लोगों को सुनने को मिलती थीं किशोर श्री अपने को राजकुमार ही समझने लगा था।
समय-चक्र आगे बढ़ा, पहले तो किशोर ने अपने रौव्न बहादुर पर झारने लगा फिर उसकी पिटाई भी कर दिया करता था। किशोर के रौब, गाली-गलोज और मार- पीट का बहादुर हँसकर सहज ढंग से सहने लगा।
समय का चक्र और आगे बढ़ा। अब निर्मला भी उसे शक और बेहाया की दृष्टि से देखने लगी। तो भी वह सहता रहा। हँसता रहा क्योंकि उसका हँसना स्वभव था । समय का पहिया और आगे बढ़ा अब तो लेखक भी उसको हीन दृष्टि रे देखने लगे । इसी बीच एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी लेखक के घर कोई रिश्तेदार मिलने आये और 1 रुपये खोने के बहाना को नाटक की तरह स्वांग रचाने लगे। निर्दोष बहादुर को जन्मजात चौर कहने लग । बार-बार बहादुर को डॉटकर, धमकाकर, उससे झूठ कहलवाने का पुरा प्रय्न किया। लेकिन बहादुर भी सत्य से विचलित नहीं हुआ । वह रुपया लेने की बात को अस्वीकार करता रहा । लेखक को भी गलतफहमी हो गई। नौकर लेकर अपनी बेइज्जती मानकर लेखक ने भी नहादुर को पीट दिया। बहादुर सह लिया। हँसते हुए खाना खाया, भर द्िन गीत गुनगुनादे रहा, अब वह कुछ उदास भी रहने लगा। काम-काज में मन उसका नहीं लगता परिणासत: और अधिक बातें, गाली-गलौज, डाँट-फटकार और मार-पीट उसे पड़ने लगा। वह चुपचाप सहता रहा ।
एक दिन शाम में लेखक जब दफ्तर से लौटकर आये तो ऑगन का दृश्य देखकर विष्पय में एड जाते हैं। चारों ओर उदासी आंगन गंदा, घर गंदा, घर के उपस्कर गंर्द बर्तन नहीं मजा गया, चुल्हा नहीं जला है, निर्मला माथे पर हाथ रखकर बैठी है। बेटी बगल में खड़ी है। लेखक, को समझ म्म नहीं आया। बात क्या है ? फूछने पर निर्मला कहती है। बहादुर भाग गया। लेखक ने पुन; प्रश्न किया वयों भाग गया ?
निर्मला कहती है आज तो कुछ नहीं हुआ, सबेरे से प्रसन्न दिखता था, खाना खाया औगन से सिल-बट्टा लेकर बरामदे में रखने जा रहा था कि गिरकर टूट गया । डर से इसीलिए भाग गया होगा पर मैं इसके लिए थोड़े कुछ कहती। क्या बताऊँ मेरी किस्मत में आराम ही नहीं।
लेखक ने पूछा- कुछ ले गया ?
निर्मला कहती है। यही तो अफसोस है कपड़े जूते कोई सामान नहीं ले गया। पता नहीं वह क्या समझा । अगर कहता तो घर जाने में में धोड़े रकती, पहना-ओढ़ाकर तनख्वाइ के अतिरिक्त दो-चार रुपये देकर ही भेजती ।
लेखक पुनः प्रश्न करते हैं-वह 11 रुपये ? निर्मला कहती है वह तो बच्चा कीो कृछ देना नहीं चाहती थी इसलिए झूठा बहाना बनाई और बहादुर को पीटवा दी।
किशोर भी सारा शहर छानकर घर वापस आकर कहता है, अम्मा, एक बार भा बहावुर आ जाता तो मैं उसे पकड़ लेता, माफी माँगता तथा कभी जाने नहीं देता और कभी नहीं मारता । सच में ऐसा नौकर कभी नहीं मिलेगा।
निर्मला औँख पर आँचल डालकर रोने लगती है । लेखक का भी मन में लघुता का एहसास होने लगा शायद में नहीं मारता तो वह नहीं जाता। लेखक की नजर ऑगन के टुल पर जाती है। जिस पर बहादुर के कपड़े और टुल के नीचे बही जूता जिसको पहनकर वह आया था उसे भी छोड़ दिया क्योकि वह जूता साले 'साहब के बेटा का उतारा हुआ था । लेखक अलगनी पर रखे नौकर की जेब में जब हाथ डाला तो वही गोलियाँ, पुराने ताश की गड्डी, खुबसूरत पत्थर, लेड और कागज की नावें निकले जो उसके साथ आते वक्त भी देखा गया था।
बहादुर कहानी का बोध और अभ्यास
पाठ के साथ
1. लेखक को क्यों लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया हो ?
उत्तर- नौकर बनने हेतु दिल बहादुर सामने खड़ा है निर्मला घर के कामों से परेशान रहती है नौकर वाले लोग मौज से रहते हैं। लेखक के सामने खड़ा है नौकर बनने की बहादुर । नौकर रखना उसके लिए निहायत जरूरी है। इस स्थिति में लेखक को लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया है।2. अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन करें ।
उत्तर- बहादुर खड़ा-खड़ा अपनी आँखे मलका रहा था बारह-तेरह वर्ष की उम्र है। ठिगना चकइठ शरीर गोरा रंग, चपटा मुँह है। सफेद गंजी, आधीं बाँह वाली सफेद कमीज, भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। गले में स्काउटों की तरह बँधे रूमाल थे ।3. लेखक को क्यों लगता है कि' नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था?
उत्तर- लेखक के भाइयों के यहाँ नौकर थे । भाभियाँ आराम से रानियों की तरह बैठकर समय बिताती थी उसके विपरीत लेखक की पत्नी निर्मला भर दिन काम करते-करते परेशान रहा करती। ऊपर से निर्मला अस्वस्थ भी रहने लगी थी। ऐसी हालत में लेखक को लगता है कि नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था।4. साले साहब से लेखक को कौन-सा किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा ?
उत्तर- साले साहब से लेखक को "बहादुर" की वह किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा जिसमें उसके द्वारा नेपाल को छोड़कर भारत आने का किस्सा है।5. बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था ?
उत्तर- "बहादुर" की माँ उसको बहुत मारती थी । एक दिन भेंस के कारण गुसैल माँ ने उसे अधमरा कर दिया। उसी गुस्सा पर वह अपने घर से भाग आया।6. बहादुर के नाम से "दिल" शब्द क्यों उड़ा दिया गया ? विचार करें।
उत्तर- बहादुर के नाम से "दिल" शब्द को निर्मला ने उड़ा दिया। विचारणीय है, क्यों ? सम्भवत: निर्मला को बोलने में अथवा उसको बुलाने में कम समय की लागत होगी।दिल से जो बहादुर हो बह शरीर से बहादुर हो ऐसा संभव नहीं होता । लेकिन बहादुर की शारीरिक क्षमता बहादुर जैसा ही थी । मात्र वह दिल से ही बहादुर नहीं था। इसलिए "दिल" हटाकर '"बहादुर" के नाम से पुकारा जाता था।
7. व्याख्या करें-
(क) उसकी हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़ियाँ बिखर गई हों।
उत्तर- प्रस्तुत पक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक गोंधूली भाग-2 गद्य खण्ड के "बहादुर" शीर्षक है। कहानी से उद्धत किया गया है। जिसके लेखक अमरकांत जी जब लेखक दफ्तर से आता है तो घर के लोग अपना-अपना अनुभव सुनात देख बहादुर भी लेखक के सामने आकर सिर झुका लेता और धीरे-घीरे मुस्कराने लगता । कुछ मामूला घटना की रिपोर्ट देकर हँसने लगता। उस समय उसकी हँसी लेखक को बड़ी कोमल और मेठी जैसा लगता। मानों जैसे फूल की पंखुड़ियाँ बिखर गई हैं।यहाँ पर उसके मुख को फूल और उसक दातां को पंखुड़ियाँ की उपमा देकर उपमालंकार का प्रयोग हुआ है।(ख) पर अब बहादुर से भूल-गलतियाँ अधिक होने लगी थीं ।
उत्तर- प्रस्तुत पक्ति हमारे पाठ्य-पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के गद्य खण्ड के "बहादुर शीर्षक कहानी से ली गयी है जिसके लेखक अमरकान्त हैं। कहानी प्रसंग में "बहादुर" को मारने वालों की संख्या जब दो हो गई। किशोर के साथ-साथ निर्मला के हाथों से भी बहादुर पिटने लगा। कभी-कभी एक गलती में दोनों मारते थे तो उसका मन नहीं लग रहा था जिसके कारण बहादुर से भूल-गलतियोँ अधिक होने लगी थीं । जब किसी का मन क्षुब्ध हो तो भला कैसे किसी काम में मन लगेगा जब मन नहीं लगेगा तो गलतियाँ होंगी ही ।(ग) अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो संतोष हो जाता।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक "गोधूली" भाग-2 के गद्य खण्ड के "बहादुर शीर्षक से ली गयी है। जिसके कहानीकार अमरकान्त हैं । कहानी के संदर्भ में "बहादुर" जैसा कर्मठ और ईमानदार नौकर बिना तनख्वाह लिए, सब कुछ छोड़ भाग जाता है तब किशोर "बहादुर" को खोजने के लिए पूरे शहर को छान डाला ।बहादुर कहीं नहीं मिला। अन्त में किशोर निर्मला से कहता है कि अम्मा, यदि बहादुर मिल जाता तो उससे माफी मॉँग लेता, कभी नहीं मारता । सच, अब ऐसा नौकर कभी नहीं मिलेगा । कितना आराम दे गया वह । "अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो संतोष हो जाता ।" वस्तुतः बहादुर जैसे ईमानदार, कर्मठ नौकर मिलना तो मुश्किल है ही । फिर बहादुर कुछ नहीं ले गया, उसने अपनी कमाई को भी छोड़ दिया, भला इतना बड़ा त्यागी के चले जाने पर कौन सतुष्ट होगा।
(घ) यदि में न मारता, तो शायद वह न जाता।
उत्तर- प्रस्तुत उक्ति अमरकान्त की है। अमरकान्त द्वारा लिखित "बहादुर" शीर्षक कहानी में जब लेखक भी "बहादुर को मार दिये तो "बहादुर" सब कुछ छोड़ भाग जाता है । लेखक को अपनी लघुता का अनुभव होने लगता है कि"यदि मैं न मारता, तो शायुद वह न जाता । वस्तुतः किशोर मारा, निर्मला मारी लेकिन बहादुर नहीं भागा। लेखक के हाथ मार खाकर समझ जाता है कि हमको समझने वाला अब कोई नहीं है तो भाग गया ।8. काम-घाम के बाद रात को अपने बिस्तर पर गये बहादुर का लेखक किन शब्दों में चित्रण करता है ? चित्र का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर- काम-काज के. बाद रात में बहादुर जब अपने बिस्तर पर जाता है तो लेखक बड़े ही मनोरंजक और मार्मिक शब्दों में चित्रण करते हुए कहते हैं-वह विस्तर पर बैठ जाता और अपनी जेब से नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता, जो बाई ओर काफी झुकी रहती थी । फिर एक छोटा आईना निकालकर अपना मुँह देखता था और प्रसन्न नजर आता था। बाद में कुछ गोलियाँ, पुराने ताश की गड्डी, कुछ खुबसूरत पत्थर के टुकड़े, ब्लेड और कागज की नावें निकालकर उनसे खेलता । बाद में घीमे-धीमे स्वर में गुनगुनाता । जिसको लेखक स्रमझ तो नहीं पाते थे पर उसकी मीठी उदासी सारे घर में फैल जाती, जैसे कोई पहाड़ की निर्जनता में अपने किसी बिछुड़े हुए साथी को बुला रहा है। जिसका आशय है कि 'बहादुर घर-परिवार, बन्धु-बान्धवे से दूर रहकर भी अपने गीत के माध्यम से अर्कलापन को दूर कर लेता।9. बहादुर के आने से लेखक के घर और परिवार के सदस्यों पर कैसा प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- "बहादुर" के आने से लेखक सहित घर और परिवार वाले सदस्यों पर विशेष प्रभाव पड़ा- लेखक में ऊँचाई का एहसास होने लगा। वे मुहल्ले के लोगों के षहले से तुच्छ समझने लगे थे । किसी से सीधे मुँह से बात भी नहीं करते । किसी को ठीक ढंग से देखते भी नहीं । कई बार पड़ोसियों के बीच कहते सुनाई पड़े-जिसके पास कलेजा है वही आजकल नौकर रखता है। निर्मला भी फूले नहीं समाती थी, अपनी बड़प्पन पड़ोसिन के बीच कर आती । परिवार के सभी सदस्य सम्पूर्ण काम बहादुर से करवाने लगे थे किशोर का मन तो बढ़ा था ही बहादुर का आ जाने से उसके काम पहले होने लगा इत्यादि ।10. किन कारणों से बहादुर ने एक दिन लेखक का घर छोड़ दिया ?
उत्तर- बहादुर ईमानदार, कर्मठ नौकर था। जैब तक बहादुर को सदस्यों का प्यार मिलता रहा। चह लेखक के घर काम करता रहा। जब लेखक का पुत्र किशोर उसे पीटने लगा, वह हँस-हँसकर झेलता रहा। जब घर की मालकिन निर्मला उस पर हाथ उठाई तो भी वह सह लिया। परन्तु जब लेखक भी बिना गलती में उसकी पिटाई करते हैं तो उसका हृदय फट जाता है। वह समझ जाता है कि अब इस घर में कोई नहीं है जो मेरी सच्चाई को समझ सके। अत: बहादुर लेखक के घर को छोड़कर भाग जाता है।11. बहादुर पर ही चोरी का आरोप क्यों लगाया जाता है और उस पर इस आरोप का क्या असर पड़ता है?
उत्तर- बहादुर पर ही चोरी का आरोप क्यों लगाया जाता है ? इस प्रश्न का उत्तर तो साफ है कि बहादुर नौकर है आजकल लोग नौकर-चाकर पर विश्वास करते ही नहीं । फिर बहादुर पर न करेगा। यही बात सोंचकर रिश्तेदार की पत्नी ने बहादुर पर गलत आरोप मढ़ दिया। पुनः इतना बड़ा आरोपी और कौन बन सकता था । रुपये चोरी के मनगढ़न्त आरोप से उसके ऊपर जो प्रभाव पड़ा उससे प्रभावित होकर वह उदास हो गया, उससे अधिक गलतियाँ होने लगी। मालिक-मालकिन के प्रति उसका मन क्षुब्ध हो उठा और वह घर से भाग निकला।12. घर आए रिश्तेदारों ने कैसा प्रपंच रचा और उसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर- लेखक के घर आए रिश्तेदारों ने 11 रुपये चोरी का प्रपंच रचा । क्योंकि उनको वहाँ कुछ भी खर्च नहीं करना पड़े । इस प्रपंच के परिणामस्वरूप लेखक भी अपनी सुझ-बुझ खो दिये। घर के लोगों में "बहादुर" को मारने पीटने की क्रिया में बढ़ोत्तरी आ गई । उसी प्रपंच के कारण वह लेखक के घर छोड़कर भाग भी गया।13. बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है ?
उत्तर- बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा हुआ क्योंकि बहादुर जैसे ईमानदार, कर्मठ नौकर अब कहाँ मिल सकता है तथा वह कुछ भी नहीं ले गया। उसने अपना तनख्वाह भी छोड़ गया । उस पर गलत आरोप लगे सबों ने अपनी मर्यादा खोकर उसकी पिंटाई करने लगे थे । इन सब गलतियों के कारण सबको पछतावा होता है।14. बहादुर, किशोर, निर्मला और कथा वाचक का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर- बहादुर- "बहादुर" अमरकान्त का नौकर है । वह नेपाल-भारत सीमांचल प्रदेश का रहने वाला है । वह हसोड, ईमानदार एवं कर्मठ नौकर है । वह माँ के डर से भागकर भारत आया था। अमरकान्त जी सपरिवार उसको मारते-पीटते हैं। जिसे वह हँसते हुए सह लेता है । परन्तु उसे गाली-गलौज पसन्द नहीं । वह स्वाभिमानी है बाप-माँ के प्रति उसकी आस्था उत्तम है क्योंकि जब बाप के नाम गाली लोग देते हैं तो वह प्रतीकार करता हुआ दिखाई पड़ता है। मान-सम्मान चाहने वाला बहादुर के प्रति जब लेखक के परिवार वाले का विश्वास उठने लगता है तो वह अपनी ईमानदारी का परिचय देने के लिए वह लेखक या लेखक के साले साहब का दिया हुआगंजी-कमीज और जूता भी छोड़कर वह चला जाता है । किशोर किशोर लेखक का पुत्र है। वह शान - शौकत में रहना पसंद करता है। बहादुर के प्रति रोव जमाना ऐसा लगता है कि वह रॉविला है। परन्तु वह सहृदय है क्योंकि जब बहादुर भाग जाता है तो वह बहादुर को खोजने का प्रयास करता है। वह अपने अम्मा से कहता है कि यदी
बहादुर मिल जाता तो उससे माफी मॉँगकर उसे रोक लेता, उसको कभी नहीं मारता । निर्मला-निर्मला लेखक की पत्नी है। वह अपने शान-शौकत की बड़प्पन सुनना चाहाती है। वह नौकर रखना गर्व मानती है लेकिन अंधविश्वासी होने के कारण वह बहादुर जैसे ईमानदर और कर्मठ बहादुर पर विश्वास नहीं करती है । वह भाग्यवादी भी है। इसलिए कहानी के अंत में निर्मला अपने भाग्य को कमजोर मानकर भाग्य पर रती है। यदा-कदा वह अन्य स्त्रियों के बहकावे में भी आ जाती है। अमरकान्त-अमरकान्त " बहादुर" कहानी का लेखक है। वे शान-शौकत में रहना पसन्द करते हैं। नौकर-चाकर रखना गौरव की बात मानते हैं। अमरकान्त जी को बड़प्पन सुनने में बड़ा आनन्द आता है। निर्मला को अधिक परिश्रम करते देख नौकर रखते हैं। लेखक भी अन्धविश्वासी
है तथा वास्तविकता को समझ नहीं पाते हैं। लेखक को शीघ्र गुस्सा भी आ जाता है। लेकिन अपनी गलती समझ जाने पर पश्चाताप भी करते देखे जाते हैं।
15. निर्मला को बहादुर के चले जाने पर किस बात का अफसोस हुआ ?
उत्तर - बहादुर के चले जाने पर निर्मला को अफसोस है कि वह कुछ भी नहीं ले गया। न कोई कपड़ा, न जूता और न तनख्वाह का एक पैसा । सब कुछ छोड़कर चला गया।16. कहानी छोटा मुँह बड़ी बात कहती है। इस दृष्टि से "बहादुर" कहानी पर विचार करें।
उत्तर - कोई भी कहानी-कविता छोटा मुँह बड़ी बात कह डालती है।"बहादुर कहानी भी समाज की यथार्थता को पूर्ण रूप से उजागर करता है। मध्यमे वर्ग के लोग ऊँचे वर्ग के लोगों का अनुचर होते हैं। लेकिन वास्तविकता तो यह है। कि मध्यमवर्गीय परिवार वालों को उच्चवर्गीय लोगों राह पर चलने आता ही नहीं। मध्यम वर्ग केलोग में नौकरों के प्रति उदारता का अभाव होता है जिसके कारण नौकर टिक नहीं पाते। यह कहानी यह भी कहती है कि मनुष्य प्रेम-मान चाहता है। वह स्नेह और सम्मान के सम्मुख पैसा का कोई महत्व नहीं देता । यह कहानी यह भी बोलती है कि पारिवारिक मोह में पड़कर पढ़े-लिखे, बुद्धिमान लोग भी दिग्भ्रमित हो जाते हैं । यह कहानी यह भी ब्रोलती है कि- सत्य को नहीं छोड़ना चाहिए । झूठ का सहारा लेने से सत्यता कुण्ठित हो जाती है । जो व्यक्ति यथार्थता को नजरअंदाज करता है उसे ही पश्चाताप की आग में जलना भी पड़ता है।
17, कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए । लेखक ने इसका शीर्षक "नौकर" क्यों नहीं रखा ?
उत्तर - "बहादुर" शीर्षक सार्थक है क्योंकि नौकर बहादुर है। वह नौकर की तरह नहीं काम करता बल्कि उस परिवार में में बहादुर था तो ईमानदारी में भी बहादुर था। अतः "बहादुर" शीर्षक ही सार्थक है। लेखक ने इस कहानी का शीर्षक नौकर नहीं रखा क्योंकि बहादुर नौकर तो अवश्य था। लेकिन वह जब तक लेखक के घर रहा केवल स्नेह का इच्छुक रहा । उसे परिवार से प्रेम चाहि था। वह मान-इज्जत चाहता था पैसा नहीं। जबकि नौकर तनख्वाह के लिए नौकरी कंरता है। पैसा यदि उसे नहीं मिलता हो तो नौकर मालिक के यहाँ चोरी करता है। बहादुर उन सबसे विपरीत था। पुनः जब वह बहादुर नाम से पुकारा ही जाता था तो अन्य शीर्षक रखना कैसे उचित होगा।अत: लेखक ने "नौकर" शीर्षक नहीं देकर "बहादुर" शीर्षक दिया है।
बहादुर कहानी का भाषा की बात
1, निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर- मारते-मारते मुँह रंग देना- अंगर मेरे बारे में शिकायत करोगे, तो मारते-मारते मुँह रंग दूँगा।हुलिया टाइट करना - परीक्षा में कराई होने से परिक्षार्थी का हलिया टाइट होने लगता है।
हाथ खुलना - बहादुर के प्रति निर्मला के भी हाथ खुलने लगे।
मजे में होना--जिसके घर नौकर होते हैं वे लोग मजे में होते हैं।
बातों की जलेबी छानना- आजकल थोड़ी बात को लेकर लोग बातों की जलेबी छानते हैं।
कहीं का न रहना - असत्य को साथ देने वाला कहीं का नहीं रहता ।
नौ दी ग्यारह होना - श्याम के जगने पर चोर नौ दो ग्यारह हो-गये।
खाली हाथ जाना- चोर के नहीं मिलने पर पुलिस वाले खाली हाथ गये ।
बुरे फँसना -- उधार पैसा लेकर में बुरे फस गया हूँ।
पेट में लम्बी डाढ़ी-पेट में लम्बी डाढ़ी खने से काम नहीं चलेगा ।
चहल-पहल मचाना- सुबह होते ही लड़के चहल-पहल मचाने लगते है।
2. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग करते हुए लिङ्ग-निर्देश करें-
उत्तर- रूमाल-वह रूमाल गरन्दा है। ओहदा-ओहदा की प्राप्ति होते ही उसमें घमुंड आ गया है। भरण-पोषण तुम्हारा भरण-पोषण कौन करता है। इज्जत-उसकी इज्जत लूट गई। झनझनाहट-बत्तन की झनझनाहट सुनकर में जागा। फरमाइश--सोहन की फरमाइश भी सुनो। छेड़खानी-इस. प्रकार की छेड़खानी अच्छी नहीं । पुलई- बाँस की पुलई झुकी होती है।फ्रिक - मंदन की फ्रिक मत करो ।
चादर - उसकी चादर फट गई।
3. निम्नलिखित वाक्यों की बनावट बदले
(क) सहसा में काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो।
उत्तर- जिस पर एक भारी दायित्व आया हो उस व्यक्ति को गंभीर हो जाना चाहिए और सहसा मैं काफी गंभीर हो गया।(ख) माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी।
उत्तर- उसकी बड़ी गुस्सैल माँ उसको बहुत मारती थी ।(ग) मार खाकर भैंस भागी-भागी उसकी माँ के पास चली गई, जो कुछ दूरी पर एकखेत में काम कर रही थी।
उत्तर- भेंस मार खाकर कुछ दूरी पर एक खेत में काम करती हुई उसकी माँ के पास चली गई।
(घ) में उससे बातचीत करना चाहता था, पर ऐसी इच्छा रहते हुए भी मैं जान-बूझकर गंभीर हो जाता था और दूसरी ओर देखने लगता था।
उत्तर- मैं उससे बातचीत की इच्छा रखते हुए भी जान-बूझकर गंभीर होकर दूसरी ओरदेखने लगता था।
(ङ) निर्मला कभी-कभी उससे पूछती थी बहादुर, तुमको अपनी माँ की याद आती है ?
उत्तर- निर्मला कभी-कभी उससे पूछती बहादुर तुमको अपनी माँ की याद आती है ?4. अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित व ग्यों के प्रकार बताएँ-
(क) वह मारता क्यों था ?
उत्तर- प्रश्नवाचक ।(ख) वह कुछ देर तक उनसे खेलता था।
उत्तर- विघानवाचक ।।(ग) दिन मजे में बितने लगे ।
उत्तर- विघानवाचक ।(घ) देख-बे, मेरा काम सबसे पहले होना चाहिए।
उत्तर- आज्ञावाचक(च) रास्ते में कोई ढंग की दुकान नहीं मिली थी, नहीं तो उधर से ही लाती ।
उत्तर- शर्तबोधक ।बहादुर कहानी का शब्द निधि :
पंच बगाबर = प्रंच की तरह । दो पक्षों के बीच का निर्णायक। ओहदा = पद । जून = वक्त । बेजुबान = मूक, भाषाहीन, गूगा। हिंदीयत = चेतावनी, सावधानी । शरारत = चंचलता बदमाशी । शऊर = ढंग, शिष्टाचार, सलीका । तुच्छ = नगण्य, क्षुद्र । फरमाइश = आग्रह, निवेदन । नेकर = पेंट । पुलई = पेड की सबसेऊँची शाखा। सवांग संगा, परिवार का सदस्य । फिरकी = नाचने वालो घिरनी । कायल = आकांक्षी, अध्यस्त, आदी । दायित्व = जिम्मेदारी । दर्पण = आईना । खुँट = साडी के आँचल से बँधी हुई गाँठ । घाघ घुटा हुआ, चतुर । होंड्ना = मॅथना मँथाना|। अलगनी =कपड़े डाल के लिए बँधी लंबी रस्सी, खूँटी।
Thanks
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