3. माँ -ईश्वर पेटलकर
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3. माँ -ईश्वर पेटलकर |
बोध और अभ्यास
1. मंगु कै प्रति माँ और परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवहार में जो फर्क है । उसे अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर- मंगु जन्म से पागल और गूंगी बालिका थी । माँ के लिए कोई कैसी भी संतान हो उसकी वात्सल्यता फूट हो पड़ती है । मंगु की देख-रेख करनेवाली माँ को अपनी पुत्री एवं ईश्वर से कोई शिकायत नहीं है । ममता की प्रतिमूर्ति माँ स्वयं अपना सुख को भूलकर पुत्री के लिए समर्पित हो जाती है । उसकी नींद उंड़ गई है । रात-दिन अपनी असहाय बच्ची के लिए सोचती रहती है । मंगु के अलावा माँ के लिए तीन संताने थी । वे भी अपनी मॉँ के व्यवहार से अनमने सा दुखी रहते हैं। माँ में ऐसी बात नहीं कि मंगू के अतिरिक्त अन्य संतानों से लगाव नहीं है परन्तु परिस्थिति ऐसी है कि मंगु के बिना उसका जीवन अधूरा है । दो बेटे के साथ-साथ घर में उनकीबहुएँ और पोते-पोतियाँ भी हैं । एक अन्य पुत्री जो ससुराल चली गई है वह भी है । छूट्टियों में जब भी पोते-पोतियाँ आते हैं तो आस लगाते हैं कि उन्हें दादी माँ का भरपूर प्यार मिलेगा किन्तु माँ का समग्र मातृत्व मंगु पर निछावर हो गया है । मातृत्व के स्नेह में खिंची बहुएँ माँजी के प्रति अन्याय कर बैठती हैं । माँ के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य मंगु को पागलखाना में भर्ती कराकर निश्चित हो जाना चाहते हैं किन्तु माँ बराबर इसका विरोध करती रहती है । माँजी अस्पताल को गोशाला समझती थीं । इसलिए मॉज़ी घर में ही डॉक्टरों को बुलाकर इलाज कराती है । लोगों के बहुत कहने-सुनने के बाद वह मुंगु को अस्पताल में भर्ती कराकर लौटती तो है किन्तु वह भी मंगु की तरह व्यवहार करने लगती है ।
2. माँ मंगू को अस्पताल में क्यों नहीं भर्ती कराना चाहती ? विचार करें ।
उत्तर- माँ अस्पताल को व्यवस्था से मन हो मन कॉप जाती थी । वह लोगों को अस्पताल, के लिए गोशालाओं की उपमा देती थी। मगु बिस्तर पर पखाना-पेशाब कर देती थी। वह खिलाने पर ही खाती थी । माँजी में आत्मविश्वास था कि अस्पताल में डॉक्टर नर्स आदि सभी अपना कोरम पुरा करेंगे । बिस्तर भीगने पर कोन उसके कपड़े और बिस्तर बदलेगा । माँजी के मन में इसी तरह के विभिन्न प्रश्न उठा करते थे । इन्हीं कारणों से बह मंगू को अस्पताल में भर्ती नहीं कराना चाहती थी ।3. कुसुम के पागलपन में सुधार देख मंगु के प्रति माँ परिवार और समाज की प्रतिक्रिया को अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर- कुसुम एक पढ़ने-लिखनेवाली लड़की है । उसकी माँ चल बसी है । अचानक वह भी पागल की तरह आचरण करने लगती है। उसी टट्टी-पेशाब का ध्यान नहीं रहता है । कुसुम को अस्पताल में भर्ती की बात सुनकर मॉजी को लगा कि यदि उसकी माँ जीवित होती तो अस्पताल में भर्ती न करने देती । कुसुम अस्पताल में भर्ती कर दी जाती है । डॉक्टर, नर्स आदि की देख-रेख में कुसुम धीरे-धीरे ठीक होने लगती है । कुसुम ठीक होने पर घर आती है । सुभी उससे मिलने के लिए आती हैं। माँजी उससे विशेष रूप से मिलती हैं । कुसुम की बातों से माँजी का हृदय बदल जाता है । उन्हें भी अस्पताल के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई । गाँव के लोगों ने मॉजीको समझा कि एक बार अस्पताल में भर्ती कराकर तो देख लो । यदि ठीक नहीं हुई तो मंगु को वापस बुला लेना । अंत में मॉजी ने भर्ती कराने का निर्णय लिया । उन्होंने अपने बड़े पुत्र के पास पत्र भेजा । पत्र मिलते ही बड़ा पुत्र आ गया और माजी के साथ मंगु को लेकर अस्पताल गया । अस्पताल में भर्ती कराकर मॉजी घर लौट आती हैं ।
4. कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें ।
उत्तर- किसी भी कहानी का शीर्षक धुरी होता है जिसके इर्द-गिर्द कहानी घूमती रहती है । किसी भी कहानी के शीर्षक की सफलता, औचित्य एवं मुख्य विचार, लघुता, भाव, व्यंजना आदिपर निर्भर करती है । आलोच्य कहानी का शीर्षक इस कहानी के मुख्य कृत्तित्व-छितराया हुआ है । समग्र मामृत्व का बोझ सहनेवाली मॉजी इस कहानी का मुख्य पात्र हैं। जन्म से पागल और गूंगी लड़की की
सेवा तन-मन से करती है । जन्मदात्री होने का वह अक्षरशः पालन करती हैं। माँ को अपनी पुत्री और ईश्वर से कोई शिकायत नहीं है । ममता की प्रतिमूर्ति माँ स्वयं अपना सुख को भूलकर पुत्रो के लिए समर्पित हो गई है । घर में बेटी-बेटे, बहू, पोता-पोतियों के साथ उसका संबंध बुरा नहीं है फिर वे माँजी से खुश नहीं रहते हैं । वे समझते हैं कि मॉजी पागल बेटी के लिए स्वयं पागल हो गई हैं । पढ़ने-लिखनेवाली कुसुम भी जब पागल की तरह आचरण कुरने लगती है और उसे अस्पताल में भर्ती कराया जाता है तो वह मन-ही-मन दु:खी हो जाती है । वह सोचती है कि मातृहीन कुसुम आज विवश हो गई है । यदि उसकी माँ होती तो शायद अस्पताल में भर्ती नहीं
कराने देती । कुसुम के ठीक होने एवं गाँव के लोगों के कहने-सुनने पर माँजी भी अंततः मंगू को अस्पताल में भर्ती करातो देती हैं किन्तु स्वयं पागल हो जाती हैं । एक माँ ही अपनी संतान को समझ सकती है । संतान कैसी भी हो, किन्तु उसकी ममता में कहीं कोई कमी नहीं आती है । वस्तुतः इन दूष्टान्तों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और समीचीन है ।
5. मंगू जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है, उस अस्पताल के कर्मचारी व्यवहार-कुशल हैं या संवेदनशील ? विचार करें।
उत्तर- मंगु जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है उस अस्पताल के कर्मचारी संवेदनशील हैं। अस्पतालकर्मियों का काम मरीजों के साथ अच्छे से व्यवहार करना और सेवा करना है किन्तु इस अस्पताल के कमी व्यवहार-कुशल ही नहीं संवेदनशील भी हैं । अस्पताल में अनेक मरीज आते हैं। उन्हें परिजनों से क्या प्रयोजन । मंगु उनका मरीज अवश्य है किन्तु वे भी मॉजी की वात्सल्यता और ममत्व से वे प्रभावित हो जाते हैं । वे मॉजी को आश्वस्त कर घर भेजना चाहते हैं कि उनकी बेटी को कोई कष्ट नहीं होगा । मॉजी के रूदन को देखकर डॉक्टर, मेटून और परिचारिकाओं के हृदय भर गये । वे मन-ही-मन सोचने लगे कि किसी पागल का ऐसा स्वजन अभी तक कोई नहीं आया है। एक अधेड़ परिचारिका उसे अपनी बेटी मानने लगती है । ऐसा व्यवहार कोई कर्मचारीनहीं संवेदनशील ही कर सकता है ।
6. कहानी का सारांश प्रस्तुत करें ।
उत्तर- गुजराती साहित्य के धनी ईंश्वर पेटलीकर एक लोकप्रिय कथाकार हैं । इनके कथा-साहित्य में गुजरात का समय और समाज, नये-पुराने मूल्य, दर्शन और राग आदि रच-पचकर एक नई आस्वादता के साथ उपस्थित होते हैं । प्रस्तुत कहानी में माँ की वात्सल्यता अर ममत्व का सजीवात्मक चित्रण किया गया है । जन्मसे पागल और गूगी बेटी को मॉजी जिस तरह पाल-पस रही है वह कथनीय है । अपना समस्त भुलकर बेटी का सुख ही उसका अपना सुख है ऐसी बातें सचिनेवाली कोई साधारण माँ नहीं होती । समग्र मातृत्व उड़ेलनेवाली माता निश्चय ही आदरणीय होती है । माँजी को मंगु के अतिरिक्त बेटा-बेटी, पोता-पोती और बहुएँ हैं । माँजी को ऐसा नहीं है कि अन्य सदस्यों से लगाव नहीं है। किन्तु वह तो मंगु समर्पिता हैं। अन्य सदस्य माँजी को, दूसरी नजरों से देखते हैं फिर भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पङ्ता है। बागल के अस्पताल में वह मंगू को भर्ती नहीं कराना चाहती है । कुसुम के ठीक होने एवं लौगों के कहने-सुनने पर वह मंगू को अस्पताल में भर्ती कराने जाती हैं । अस्पतालकुर्मियों की संवेदनशीलता से वे प्रभावित हो जाती हैं । वह मंगु को अस्पताल में भर्ती
कराकर लौट आती हैं । माँजी की आँखों के सामने मंग का प्रतिबिम्ब झलकने लगता है । रात्रि में उन्हें नींद नहीं आती है । माँ की सिसकियों से बेटे की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी । माँ के प्रति बेटटे के मन में विविध भाव उठने लगे । माँ को सोता समझ कर बेटा भी अपनी पलके गिरा ली । मॉजी अचानक मंगु की तरह आचरण करने लगती हैं । मंगु की सहकमिणी आज स्वयं मंगु बन गई थीं। वस्तुत: इस कहानी में लेखक ने माँ की ममता का सजीवात्मक विश्लेषण किया है।
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