2. ढहते विश्वास -सात कोड़ी होता
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2. ढहते विश्वास -सात कोड़ी होता |
बोध और अभ्यास
1. लक्ष्मी कौन थी ? उसकी पारिवारिक परिस्थिति का चित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर-'लक्ष्मी ढहते विश्वास' कहानी की प्रमुख पात्रा है। उसका पति (लक्ष्मण) कलकत्ता (आज का कोलकाता) में नौकरी करता है । पति द्वारा प्राप्त राशि से उसका घर गृहस्थी तहीं चलता है तो वह तहसीलदार साहब के घर का कामकर किसी तरह जीवनयापन कर लेती है। पूर्वजों के द्वारा छोड़ा गया एक बीघा खेत है । किसी तरह लक्ष्मी ने उसमें खेती करवाई है । वर्षा नहीं होने से अंकुर जल गये तो कहीं-कहीं धान सूख गये । एकतरफ सूखा तो दूसरी तरफ लगातार वर्षा से लक्ष्मी का मन कॉप गया है । उसे बाढ़ का भयावह दृश्य नजर आने लगता है ।2. कहानी के आधार पर प्रमाणित करें कि उड़ीसा का जन-जीवन बाढ़ और सूखा से काफी प्रभावित रहा है ।
उत्तर- उड़ीसा का भौगोलिक परिदृश्य ऐसा है कि वहाँ प्राय: बाढ़ और सूखा का प्रकोप होता रहता है । प्रकृति को विकरालता शायद उड़ीसा के लिए हिं ऐसा है । प्रस्तुत कहानी में सूखा और बाढ़ दोनों का सजीवात्मक चित्रण किया गया है । देबी नदी के तट पर बसा हुआ एक गाँव जहाँ कुछ दिन पहले अनावृष्टि के कारण खेतों में लगी हुई फसलें जल-भुन गईं । हताश और विवश ग्रामीण आनेवाले भविष्य को लेकर चिन्तित थे कि अचानक अतिवृष्टि होने लगी । लोगों की आशंकाएँ बढ़ गईं कि कहीं बाढ़ न आ जाये । नदी का उफान बढ़ता जा रहा था । ग्रामाण बाँध टूटे नहीं इसके लिए रात-दिन इसकी मरम्मत करने में लग जाते हैं । उन ग्रामीणों के लिए यह पहली बाढ़ नहीं है । वह लोग पुराने दृश्यों को यादकर सशकित हो उठते हैं । नदी का प्रवाह बढ्ता जाता है और बाँध टूटे जाता है । चारों तरफ पानी फैल जाता है । लोग ऊँचे स्थान पर आश्रय लेते हैं । लोग जीवन मौत से जुझने लगते हैं । उस क्षेत्र के लोग बाढ़ और सूखा से परिचित हो गये हैं। धीरे-धोरे बाढ़ समाप्त हो जाती है किन्तु उसकी त्रासदी का दंश उन्हें आज भी सहनी पड़ती है ।3. कहानी में आये बाढ़ के दश्यों का चित्रण अपने शब्दों में प्रस्तुत करें ।
उत्तर- बाढ् शब्द सुनते ही मन-मुस्तिष्क में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगते हैं । त्रासदी का ऐसा तांडव जो जीव-जगत को तबाह कर दे । उड़ीसा जैसा प्रदेश प्राय: बाढ़-सूखा से त्रस्त रहता है । प्रस्तुत कहानो में आये हुए बाढ़ का चित्रण बडा ही त्रासदीपूर्ण है । देबी नदी के किनारे स्थित लक्ष्मी का गाँव प्रायः बाढ़ की चपेट में आ जाता है । लगातार वर्षों होने से लक्ष्मी का गाँव प्राय: बाढ़ की च्पट में आ जाता है । लगातार वर्षा होने से लक्ष्मी को अन्दर से झकझोर देता. है । मनुष्य की आवाज, उसके शब्द, आनन्द, कोलाहल सब रेत में दफन हो गये हैं। दहेई बाँध टूटने से नदी का पानी सर्वत्र फैल गया है । चारों तग्फ चीत्कार सनाई पड़ती है । लक्ष्मी के मन में अच्छे-बुरेख्याल आने लगते हैं । पूति को अनुपस्थिति उसे खटकने लगती है । लोग ऊँची जगहों पर शरण पाने के लिए बेतहाशा दौड़ पड़ते हैं । लक्ष्मी अपने बेटे की प्रतीक्षा में बिछड़ जाती है । किसी तरह अपने बच्चों को लेकर वह दौड़ पड़ती है । धारा में उसके पैर उखड़ जाते हैं। बरगद की जटा पकड़कर किसी तरह पेड़ पर चढ़ जाती है । देखते-देखते बरेगद का पेड़ भी डूबने लगता है । लक्ष्मी अपनी साड़ी के आधे भाग को कमर में बाँध लेती है । वह कुछ ही समय में अर्चेत हो जाती है । टीले पर चढ़े हुए लोग अपने परिचितों को ढूँढ रहे थे । कोई किसी की सहायुता नहीं कर सकता था । लाश की तरह एक जगह टिकी हुई लक्ष्मी को सहसा होश आ जाता है।
वह अपने छोटे बेटे को ढूँढने लगती है । हिम्मत हार चुकी वह अनायास पेड़ की शाखा-प्रशाखा की जोड़ में फॅसे एक छोटे बच्चे को उठा लेती है । वह उसका बेटा नहीं है उसका शरीर फुला हुआ है । फिर भी वह उसे नन्हे से बच्चे को अपने स्तन से लगा लेती है ।
4. कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें ।
उत्तर- रचना-भाव का मुख्य द्वार शीर्षक होता है । शीर्षक रचना की गुरुता एवं व्यापकता को परिलक्षित करती है । शीर्षक का चयन रचनाकार मुख्यत: घटना, पात्र, घटना-स्थल, उद्देश्य एवं मुख्य विचार, बिन्दु के आधार पर करता है । विद्वानों के अनुसार शीर्षक की सफलता, औचित्य एवं मुख्ये विचार, सार्थकता, उसकी लघुती, सटीकता एवं भाव-व्यंजना पर करती है । आलोच्य कहानी का शीर्षक इस कहानी के मुख्य चरित्र से जुड़ा हुआ है । पूरी कहानी पर लक्ष्मी का व्यक्तित्व और कृतित्व छाया छितराया हुआ है मेहनत करनेवाली लक्ष्मी पति से दूर रहकर भी अपना भरण-पोषण कर लेती है । पति द्वारा भेजे गये राशि से उसका घर-खर्च नहींचलता है । अत:, वह तहसीलदार साहब के घर में काम कर अपने बेटा-बेटी, को पालन-पोषण करती है । देबी नदी के किनारे स्थित उसका घर पानी में प्रकोप का हिस्सा है । कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से त्रस्त वह मातृत्व का अक्षरश: पालन करती है । लगातार वर्षा होने से उसका आत्मविश्वास ढहने लगता है । बीती हुई बातें उसे याद आने लगती हैं । बाढ़ की त्रासदी आज भो उसके मानस पटल पर अँकित है । उसे भय होने लगता है । शायद पुनः बाढ़ का प्रकाप न हो जाये । वह नदी से दुआ माँगती है । किन्तु नदी को निष्ठुरता उसे अपने आगोश में ले लेती है। टीले पर जाने की होड में वह सब कुछ खो देती है । बेरगद के पेड़ पर आश्रय तो पा लेती
है किन्तु उसका छोटा बेटा प्रवाह में बह जाता है, पेड़ की शाखा में फँसा हुआ एक छोटे से बालक को अपना दूध तो पिला देती है किन्तु उसका आत्मविश्वास डगमंगा जाता है । कथाकार ने कथानक के माध्यम से कहानी के तत्वों को सुन्दर रूप से नियोजित किया है । बाढ़ के आने के भय से लक्ष्मी एवं उस गाँव के लोगों का जैसे आत्मविश्वास खो जाता है शायद लेखक का मन भी बैठ गया है । अत:, उपर्युक्त दृष्टयंतों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सा्थक और समीचीन है ।
5. लक्ष्मी के व्यक्तित्व पर विचार करें।
उत्तर-लक्ष्मी प्रस्तुत कहानी की प्रधान नायिका है । वह इस कहानी का केन्द्रीय चरित्र है । एक नारी का जो स्वरूप होता है वह इस कहानी में देखने को मिलता है । जीवनरूपी रथ का एक चक्र होनेवाली 'पत्नी' की भगिमा का लक्ष्मी प्रतिनिधित्व करती है । पति के बाहर रहने पर भी वह घर-गुहस्थी का बोझ अपने सिर पर ढोती है । पति द्वारा प्राप्त राशि से जब घर का खर्च नहीं चलता है तब वह तहसीलदार साहब के यहाँ काम पर खर्च जुटाती है । पहले सूखा और फिर बाढ़ के भय से लक्ष्मी सशंकित हो उठती है । उसका आत्मविश्वास डंगमंगाने लगता है । विधि के विधान को कौन टाल सकता है । लक्ष्मी को जिस बात का भय था वह उसके सामने आ जाता । बाढ़ का पानी चारों तरफ फैलने लगता है लोग ऊँची टीले पर दौड़ पड़ते हैं । लक्ष्मी भी अपनेबेटा-बेटी को लेकर जैसे-जैसे दौड़ पड़ती है । प्रवाह में उसके पैर उखड़ जाते हैं फिर भी वह हिम्मत नहीं हारती है । किसी तरह वह बरगद के पेड़ पर आश्रय पा लेती है । उसका छोटा बेटा प्रवाह में बह जाता है किन्तु एक अन्य छोटे से बालक को अपना दूध पिलाती है । मातृत्व उसका उमड़ आता है ।
6. बिहार का जन-जीवन भी बाढ़ और सूखा से प्रवाहित होता रहा है । इस संबंध में आप क्या सोंचते हैं ? लिखें ।
उत्तर- बिहार की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ बाढ़ और सूखा का प्रकोप होना ही है। उत्तरी बिहार एवं दक्षिणी बिहार की कुछ ऐसी, नदियाँ हैं जो हमेशा बरसात में उफानी रूप ले लेती हैं। दक्षिण बिहार में बहनेवाली नर्दियों का जलस्तर कम वर्षा होने पर भी जल्दी ही बढ जाती है । ये नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलकर मैदानी भाग में कहर ढा देती हैं । नेपाल से सर्ट होने एवं राजनीतिक गतिविधियों के कारण इन क्षेत्रों में बाढ़ का प्रायः प्रकोप होता है । हर वर्ष बिहार का कुछ क्षेत्र बाढ़ से काफी प्रभावित होता है । जानमाल की अपार क्षति होती है । पिछले वर्ष कोशी का तांडव अपना एक अलग इतिहास लिख दिया है । कितने गाँव बह गये । बाढसमाप्त हुआ कि महामारी फैल गयी । एक तरफ बिहार बाढ़ की चपेट में आ गया तो दूसरी, तरफ अनावृष्टि के कारण कई जिले सूखे के चपेट में आ गये । बाढ़ और सूखा की आँख-मिरचौली बिहारवासियों के लिए जीवन का अंग बन गया है । बिहारी इन दोनों से अभिशप्त हैं किन्तु कक राजनेता इनके दुःख दर्द को बॉटने के बजाय राजनीति खेल शुरू कर देते हैं।। केन्द्र की उदासीनता और राज्य की शिथिलता के कारण बिहारवासी इन त्रासदियों का दंश झेलने के लिए विवश हैं।
7. कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-उड़ीसा के प्रमुख कथाकार सातंकोड़ी होता द्वारा रचित 'ढहते विश्वास' शीर्षक कहानी एक चर्चित कहानी है । इस कहानी में मानवीय मूल्यों का सफल अंकन किया गया है। वस्तुतः होताजी के कथा-साहित्य में उड़ीसा के गहरी जीवन की आंतरिकता को उल्लेख मिलता है । उड़ीसा का जन-जीवन प्रायः बाढ़ और सूखा से प्रभावित रहता है । इस कहानी में बाढ से प्रभावित लोगों की जीवन शैली के साथ-साथ एक माँ की वात्सल्यता का चित्रण मिलता है। इस कहानी की प्रमुख पात्रा लक्ष्मी है । उसका पति कलकत्ता में नौकरी करता है । पति के पैसे सेउसकी गृहस्थी नहीं चल पाती है इसलिए वह तहसीलदार साहब के घर में काम कर अपना जीवन यापन करती है । देबी नदी के तट पर बसा हुआ उसका गाँव बाढ़ से हमेशा प्रभावित हो जाता है । इस वर्ष उसे सूखा के साथ-साथ बाढ़ का भी प्रकोप सहना पड़ता है । लगातार वर्षा होने के कारण नदी का बाँध टूट जाता है । बाढ़ की विकरालता जन-जीवन को नि:शेष करने लगती है। लक्ष्मी अपनी संतान के साथ ऊँचे टीले की ओर दौड़ती है । देखते-देखते पानी उसके गर्दन तक पहुँच जाता है । किसी तरह वह बरगद के पेड़ पर आश्रय पाती है । उसका आत्म विश्वास ढहने लगता है । उसे लगता है कि मृत्यु अब समीप है । साड़ी के आधे भाग से वह अपनी शरीर को बाँध लेती है । कुछ देर के बाद ही वह अचेंत हो जाती है । चेतना आते ही वह अपने छोटे छोटे को ढूँढने लगती है । टहनियों के बीच फँसे हुए एक बच्चे को उठा लेती है । मृत-अद्धमृत वह ब्च्चा उसका नहीं है फिर भी उसे अपने स्तन से लगा लेती है । उस समय लक्ष्मी के मन में केवल ममत्व था । वस्तुत: इस कहानी के द्वारा लेखक मानवीय मूल्यों को उद्घाटित किया है ।
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