लेखक परिचय-
कथक नृत्य के विश्व प्रसिद्ध महान कलाकार बिरजू महाराज का जन्म 4 फ़रवरो, 1938 ई० में लखनऊ के जफरीन अस्पताल में बसंत पंचमी के दिन प्रात: 8 बजे हुआ था। बिरजू, महाराज की दो बहने भी थीं। दोनों बहने रामपुर में जन्म ली थी क्योंकि 22 साल तक उनके पिता वहाँ रह चुके थे। इनके जन्म के पाँचवें साल फिर इनके पिताजी परिवार सहित रामपुर रहने लगे। वहीं से बिरजू महाराज की साधना आरम्भ हुई। मात्र छः वर्ष की उम्र में हो रामपुर के नवाब के पंसीदा नर्तक माने जाने लगे। उनकी तनख्वाह नवाब साहब ने बाँध दिया। पिताजी और माताजी नहीं चाहते थे कि हम वहाँ नाचें । बाबूजी नौकरी छोड़ना चाहते थे क्योंकि वहाँ वे 22 साल गुजारे थे। जब वहाँ से फुर्सत मिली तो दिल्ली में निवास बसाया । वहीं इनकी साधना में निखार आई। इसके बाद उनका परिवार लखनऊ में रहने लगा। लखनऊ से देश-विदेश की यात्रा होने लगी।![]() |
8. जित जित मैं निखरत हूँ - पंडित्त बिरजू महाराज |
8. जित जित मैं निखरत हूँ - पंडित्त बिरजू महाराज
सन् 1952 में मैट्रिक की परीक्षा फेल हो गये । पुनः दिल्ली आकर "संगीत भारती" में 250 रुपये की नौकरी प्रारम्भ कीं । 1956 में उन्होंने संगीत भारती की नौकरी छोड़ पुनः लखनऊ निवास करने लगे । इसी वर्ष इनकी शादी भी हो गई अब ये भारतीय कला केन्द्र से जुड़ गये। बाद में लच्छु महाराज के असिस्टेंट बने । कलकते के एक प्रोग्राम में इनकी बड़ी प्रशंसा हुई फिर सभी अखबारों में इनका फोटो और नाम छपे। उसके बाद इनका प्रोग्राम फेमस होने लंगा। नृत्य के साथ-साथ कई वाद्य यंत्रों के अच्छे वादक थे । 27 साल की उम्र में इनको संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिला। उनके प्रमुख शिष्यों में "रश्मि वाजपेयी", "तीरथ प्रताप", "प्रदीप", "वैरोनिक' ", "फिलिप मेक्लीन टॉक" आदि प्रमुख हैं। बिरजू महाराज के आगे बढ़ने में उनके माताजी. का बहुत अधिक सहयोग रहा ।
बोध और अभ्यास
पाठ के साथ
1. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर- लखनऊ बिरजू महाराज का पैतृक घर और जन्म-स्थान है। रामपुर के नवाब के यहा इनके पिताजी नौकरी करते थे। रामपुर से ही इनका नाचना प्रारम्भ हुआ। वहाँ के नवाब इनक नृत्य से बहुत प्रसन्न रहते थे।2. रामपुर की नौकरी छूटन पर हनुमान जो को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?
उत्तर- रामपुर के नवाब बिरजू महाराज.के नृत्य से बड़ा खुश रहते थे । मात्र छः वर्ष की उम्र में नवाब साहब इनकी नियुव्त तनख्याह पर कर ली। बिरजू जी की माता एवं पिता नहीं के थे कि छः वर्षीय बेटा नवाब का नाकरी कर। पिता ने नवाब साहब के सामने विरोध जाहिर विय्या दो देया नहीं तो बाप नहीं, कहकर दाना बाप-बटा की छुट्टी कर दी । जिस पर खुशी में हनुमान जी को लड्डु चढ़ाया गया था।3. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए ?
उत्तर- नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज दिल्ली के "हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक" संस्था से जुड़े और वहाँ वे 'निर्मल जोशी'. जी के सम्पर्क में आये ।4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला ?
उत्तर- पिताजी औ: चाचारजी के साथ नाचते हुए में बिरजू महाराज को प्रथम पुरस्कार मिला था।5. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर- बिरजू महाराज के गुरु उनके पिता ही थे। उनके पिता और चाचा दोनों कथक नृत्य के प्रवीण थे। बिरजू महाराज को शिष्यता स्वीकारने वक्त अपने बेटा बिरजू की कमाई 500/- लेकर उन्होंने बिरजू मह्ाराज को गण्डा बाँधा (शिष्य स्वीकार किया) था। विशेषत: उनका समय रामपुर के नवाब के यहाँ व्यतीत हुआ। वहाँ की नौकरी छोड़ने के कुछ ही दिन बाद 54 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।6. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देनी शुरू की ?
उत्तर- 1950 ई० में बिरजू महाराज 25 25 रुपये का दो ट्यूशन के माध्यम से नृत्य शिक्षा आर्य नगर में देते थे। वहीं सीता राम बागला नामक एक लड़के को भी डांस सीखाते थे तथा उससे स्वयं हाई स्कूल की पढ़ाई पढ़ते थे7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय तब आया जब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई। पैसा घर में एक भी नहीं। पिता के श्राद्ध हेतु दसवें के अन्दर बालक बिररजू को दो प्रोग्राम देना पडा जिससे 500/- रुपये प्राप्त हुए थे। उस समय उनकी उम्र मात्र 9% वर्ष की थी। माता के साथ जहाँ-वहाँ घुम-घुमकर प्रोग्राम देकर, अपना जीवन चला रहे थे।8. शम्भु महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंधों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- शंभु मंहाराज बिरजू महाराज के चाचा थे। पिताजी के समय से ही खाना-पीना अलग होता है। वे खाने-पीने के शौकीन थे । पिताजी और चाचा जी साथ-साथ भी प्रोग्राम देते थे। पिता की मृत्यु के बाद शंभु महाराज के साथ बिरजू महाराज का सम्बन्ध पूर्ववत् ही रहा ।9, कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नत्तेक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नतक जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा । बिरजू महाराज का नाम सभी अखबारों में छपे, अनेक प्रोग्राम आने लगे। बिरजू महाराज को भी आत्मविश्वास जगा तथा इसी प्रकार की प्रशंसा आगे भी मिलती रहे इसके लिए प्रयत्नशील रहने लगे।10 संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी ?
उत्तर- संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या इस प्रकार थी । संगीत भारती में काम करना तथा ट्यूशन भी पढ़ाना । साईकिल से आना-जाना करते थे । दरियागंज के मकान में रहते थे । दरियागंज से प्रतिदिन पाँच या नौ नम्बर के बस से रीगल या ओडेन सिनेमा अथवा रिवोली तक जाते थे । जैन साहब के मकान में रहकर प्रतिदिन प्रातः चार बजे उठते थे । पाँच बजे से आठ बजे तक रियाज करते थे। रियाज करते-करते थक जाने परविविध वाद्य यंत्रों को बजाते थे।
11. बिरजू महाराज कौन-कौन वाद्य बजाते थे ?
उत्तर- बिरजू महाराज कथक नृत्य के साथ-साथ सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी सरोद और तबला आदि वाद्य यंत्र बजाते थे।12. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?
उत्तर- जब बिरजू महाराज 18 साल के थे उस समय उनका विवाह हुआ था। बिरजू महाराज नहीं चाहते थे कि विवाह हो। परन्तु अम्मा जी की इच्छा से विवाह हुआ। विवाह करना वे अपनी बहुत बड़ी गलती मानते थे। पिताजी के मरने के बाद माता जी घबराहट में मेरी शादी करवा दी जो अच्छा नहीं हुआ।13. बिरजू महाराज की अपने शा्गिदों के बारे में क्या राय है ?
उत्तर- अपने शार्गिदों में पहला नाम "रश्मि वाजपेयी" का नाम है जो बहुत दिनों से बिरज महाराज के साथ काम करती है। अच्छे खानदानी लड़की में "शाश्वती" है जे 15-20 सालसे इनके साथ रियाज में है । बिदेशियों में "वैशेविक" तरक्की कर रही है। "फिलिप मेक्लीन टाक" जो वापस स्वदेश चला गया है लेकिन पुनः उसकी इच्छा है कि कुछ मुझसे सीखें "तीरथ प्रताप" और "प्रदीप अच्छा नाम किया है|"दुर्गा" भी अच्छी तरक्की कर रही है । लेकिन गरीब परिवार की है परन्तु उसका मन नाचने में है। अन्य अनेक लडकियाँ सीख रही हैं। लड़कों में नाच सीखने, में कम मन लग रहा है। कृष्ण मोहन और राम मोहन और मेरे बेटे का ध्यान भी नहीं लगता है इत्यादि ।
14. व्याख्या करें-
(क) पाँच सौ रुपये देकर मैंने गण्डा बँघवाया ।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य-पुस्तक "गोधूलि" भाग-2 के गद्य खण्ड के "बिरजू महाराज" पाठ से लिया गया है। इस पाठ में जब रश्मि वाजपेयी बिरजू महाराज से उनके बारे में पूछती हैं तो तालीम के पक्ष में बिरजू महाराज ने कहा तालीम मुझे बाबुजी से मिली है। बाबूजी ने अम्मा से कहा- जब तक तुम्हारा लड़का नजराना नहीं देगा गण्ड़ा नहीं बाँधूगा। जब मेरा दो प्रोग्राम हुआ और500 रुपये आये तो बाबूजी ने कहा इसमें से एक पैसा नहीं दूँगा यह मेरा पैसा है। में इसके गुरु हूँ तो 500 रुपया देकर मैंने गण्डा बंधवाया था।(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।
उत्तर- प्रस्तुत पक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक "गोधूली" भाग-2 के गद्य खण्ड के "बिरजू महाराज" पाठ से लिया गया है। साक्षात्कार में रश्मि बाजपेयी जब बिरजू महाराज से उनके बारे में पूछती हैं तो अपने गुरुत्व भावना को प्रदर्शित करते हुए बिरजू महाराज ने बताया कि शागिदा के सीखाने के पक्ष में में अपने पिता की तरह जिसे सिखाता हूँ पूर्ण रूप से सिखाता है जिससे वह अच्छा बन जाय । मतलब यह है कि "मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।अर्थात् मतभेद बिल्कुल नहीं है ।
(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले का ।
उत्तर- प्रस्तुत पॉॅक्ति हमारे पाठ्यपुस्तक "गोधूली" भाग-2 के गद्य खण्ड के "बिरजू महाराज'" पाठ से लिया गया है। रश्मि वाजपेयी ने बिरजू महाराज से एक साक्षात्कार में जब किसी आयोजन की खास बात की यादगारी पूछी तो बिरंजू महाराज पाकिस्तान में हुए अपने प्रोग्राम के पक्ष में कहते हैं-कोई खातुन थी उसकी आवाज "सुभान अल्लाह"' पूरे हॉल में सुनाई पड़ी थी। मतलब यह है कि मेरे नाच के आशिक तो बहुत हैं। मेरे आशिक भी हैं। मगर मैं नाच की वजह से हूँ। इसलिए आशिक तो नाच के ही होते हैं।" मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले की ।15. बिरज महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे ?
उत्तर- विरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को मानंते थे ।16. पुराने और आज के नतको के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?
उत्तर- पुराने और आज के नतकों के बीच फर्क बताते हुए बिरज महाराज ने बताया कि पराने जमाने के नतक गलोचे, स्टज आदि का कुछ विचार नहीं मन में लाते थे केवल प्रोग्राम दना । है। चाहे गलीचे में जहाँ-तहीं गङ्ढे क्यों न हा, पंखा की तो कोई बात ही नहीं। हाँ कुछ नौकर-चाकर वटे-यड़े पंखा लिए हॉफते हुए चलात थे। नाचने वक्त पंखा से हाथ नहीं टकरावे यह भी ख्याल करताअच्छा नाम किया है। था। आज के नर्तक लोग पहले स्टेज को ही कमजोर बताते हैं छोटा है, टेढ़ा है, गड्ढा है। इत्यादि ।पाठ के आस-पास
1. कथक क्या है ? उसकी प्रमुख विशर्शेषताओं के बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर- कथेक भारतीय नृत्य शला का एक प्रकार है जो पश्चिम और उत्तर भारत में प्रचलित शैली है। बिरजू महाराज कथक के महान नक्तक माने जाते हैं।2. प्रमुख भारतीय नृत्य शैलियों के बारे में जानकारी इकट्ठी करें ।
उत्तर- प्रमुख भारतीय नृत्य शैलियों में कथक, भरतनाट्यम, मणिपुरी, कृच्चिपुरी हैं। कथक उत्तर भारत के मणिपुरी पूर्वी भारत के तथा भरत नाट्यम तथा कुच्चिपुरी दक्षिण भारत के प्रमुख भारतीय नृत्य शैली है।3. निम्नलिखित विषयों के बारे में जानकारी इकट्ठी करें।
उत्तर- ( क) हिन्दुस्तानी डांस अकादमी-
यह दिल्ली में नृत्य सिखान का स्कूल था जहाँ बिरजू 'महाराज के पिताजी नाचना सिखलाते थे बाद में वही संस्था 'संगीत भारती' नाम धारण कर लिया जहाँ 'बिरजू महाराज ' 250 रुपये पर बहुत दिनों तक नीकरी की थी ।(ख) परन-
परन एक वाद्य विद्या है जो तबले क्े बोल में होता है । जब नर्त्तक नाचता है, यदि तबले पर परन बोल सुनाई पड़ता है तो नर्तक ताल भी देता है। अर्थात् तबले का वह बोल जिस पर नर्तक नाचता और ताल देता है ।(ग) सोलो-
यह नृत्य का एक प्रकार है जो एकल (अकेले) करता है वह सोलो कहलाताहै। इसके विपरीत सामूहिक नृत्य कहलाता है।(घ) भारतीय कला केन्द्र-
भारतीय कला केन्द्र लखनऊ का एक नृत्यशाला है जहाँ विविध प्रकार के भारतीय नृत्य की शिक्षा दी जाती थी । जिस समय बिरजू महाराज भारतीय कला केन्द्र में क्लास लेना प्रारम्भ किये थे उस समय वहाँ लच्छू महाराज बड़े महाराज थे। मात्र 20 वर्ष उम्र के बिरजू महाराज के पास कोई लड़कियाँ नहीं सीखना चाहती थी जब प्रथम शिष्या रश्मि वाजपेयी बनी तो अन्य लड़कियाँ भी उनके तालिम से प्रभावित होकर बिरजू महाराज से ही सीखनेलगी। अनेक प्रोग्राम भी भारतीय कला केन्द्र का देश-विदेश में हुआ । सब जगह विरजू महाराज की सराहना हुई। यहीं से उनका दिन स्वर्णिम -सा हो गया ।
(ङ) बैले-
यह यूरोपीयन नृत्य है जो अत्यन्त प्रिय नृत्य है। इसमें गाया जाता है, भाव भंगिमा भी प्रदर्शन किया जाता है तथा नाचना भी साथ होता है। अर्थात् नृत्य कथानक, भावाभिनय और नृत्य के साथ किया जाता है, बैले कहा जाता है ।(च) मालती माघव-
मालती माधव नामक एक काव्य है नृत्य में मालती-माधव में वर्णित श्रृंगार रस (प्रेमंभाव) की बैले या भारतीय नृत्य शैली द्वारा प्रस्तुति होती है। जैसे कि गीत गोविन्द, कुमारसंभव आदि का ।(छ) कुमारसंभव-
कुमारसंभव भी एक काव्य है जो महाकवि कालीदास की रचनाओं में है जिसमें शंकर पार्वती कार्त्तिकेय आदि के सम्वादों को भाव अभिनय नृत्य अऔर कथानक में तैयार कर कुमारसंभव का महत्व बढ़ाया गया है। जैसे कि गीत गोविन्द मालती-माधव को नृत्य में रूपान्तरित किया गया है ।(ज) सत्यजीत रे-
प्रसिद्ध फिल्म निर्माता रह चुके है। बिरजू महाराज बंबई में जाकर सबसे पहले । फिल्म का काम सत्यजीत रे की फिल्म का रिसेन्ट किया था।(झ) कपिला जी-
दिल्ली के हिन्दुस्तानी डांस अकादेमी में नृत्य सिखलाती थी । जब विरजू महाराज 6 वर्ष के थे, कपिला जी के सम्बन्ध में पिताजी के साथ जुड़े थे । वहाँ बिरजू जी के पिता नाच सिखाते थे पिता की मृत्यु के बाद बिरजू महाराज का निवास लखनऊ बना वहीं चौदह वर्ष की उम्र में पुनः बिरजू महाराज को संगीत भारती ( जो पहले हिन्दुस्तानी डांस अकादेमी के नाम से प्रसिद्ध था) में लाने वाली कपिला जी ही थी ।4. पाठ में नई तीन कविताओं के भावार्थ लिखें ।
उत्तर-कविता नं.-1
श्याम-श्याम श्याम है ।।
वृक्षन की----------------------शरण पाऊँ
भावार्थ सर्व जगह श्याम ही श्याम हैं। चृक्षों के पत्ते-पत्ते में, फूलों की कलियों में, पवन के झोंकों में, गुणियों के ताल में, गायक के स्वर में, कवियों के हृदय में सर्वत्र श्याम ही श्याम हैं। हे व्रज में वास करने वाले श्याम आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि अंत तक आपका शरण मुझे प्राप्त रहे।कविता नं०-2
आज प्रिय श्यामा श्याम भई ।।
एक अजूबा-------------------राघा श्याम भई ।
भावार्थ-हे सखी! आज एक अजूबा देखकर में चकित रह गई । कृष्ण राघा को अपने अक लगा लेते थे । उस समय राधा कृष्ण का एक जैसा रूप लगता था । मानों आज राधा हो कृष्ण बन गये हैं। श्रीकृष्ण की बॉसुरी को अपने हाथ में लेकर बार- बार अपने अधर (ऑठ) फर ले जाती थी और कंशी भी मधुर स्वर में बजने लगी। इस समय ब्रज के श्याम सादृश्य सौन्दर्य को राधा प्राप्त कर गई थी।कविता नं.-3
स्थिति नहीं, गति नहीं,
मुद्रा-------------------सृष्टि कथा कृति मूर्तिमान
जब विरजू महाराज का नृत्य आरम्म होता था तो दर्शक न उनकी स्थिति, न गति, न मुद्रा और न ही भगिमा को देख पाते थे बल्िक उनके लय में ही सुब लयमान हो जाते थे। मानो नृत्यका कथानक उनके सामने मूर्तिमान होकर उपस्थित हो गया हो । जबं विरजू महाराज के पैरों में घुँघरू बजता तो ऐसा लगता मानो सम्पूर्ण अंतरिक्ष में घुमते चमकते तारे हों घुँघरू से निकलने वाला स्वर ऐसा लगता मानो देवलोक से निकलकर छोटे-छोटेस्वरों का जमीन जब उनका पैर चलता था तो मानो कथानक बेबसे होकर दर्शकों को अपने रंग में रंग दिया हो। उस समय का दृश्य इस प्रकार हो जाता था मानो स्वयं भगवान लीलापति लीला करने के लिए सज-धजकर ठपस्थित हो गये हों अर्थात् दर्शक ईश्वरमय हो ब्रह्मानन्द को प्राप्त कर लेते थे इनके नृत्य काल में ऐसा लगता था मानो अनन्त रूप में भाषा इनके पैर की दासी बन गई हो। उस समय बहाँ का वातावरण ऐसा हो जाता था मानो ध्वनियों के सौन्दर्य गृह में हृदयरूपी दीप स्थाई होकर प्रकाशित कर रहा हो। कविता न० 1 और कविता न० 2 पं० बिरजू महाराज की रचना है कविता नं० 3 पं० बिरजू महाराज के नृत्य का दर्शक श्रीराम वर्मा की रचना है ।सुन्दर समुद्र बन गया. हो ।
भाषा की बात
1. काल रचना स्पष्ट करें।
(क) ये शायद 43 की बात रही होगी ।
उत्तर- वर्ष 1943 उम्र-6 वर्ष जब रामपुर की नौकरी छोड़ बाबूजी दिल्ली गये थे ।(ख) यह हाल अभी भी है।
उत्तर- वर्तमान समय जब रश्मि वाजपेयी साक्षात्कार में पं० बिरजू महाराज से उनके जीवन के बारे में पूछ रही थी ।(ग) उस उम्र में न जाने ब्या नाचा रहा होऊँगा ।
उत्तर- सन् 1943 ठम्र- 6 वर्ष, स्थान- जुबली टॉकीज दिल्ली ।(घ) अब पचास रुपये में रिक्शे पर खर्च करता तो क्या बचता और ट्यूशन में नागा हो तो पैसा काट लेते थे ।
उत्तर- 1948 ई० स्थान कानपुर, उम्र 10-1 वर्ष ।(ङ) पचास रुपये में काम करके किसी तरह पढ़ता रहा है।
उत्तर- 1948 से 195। ई० (2/½ वर्ष) उम्र- 13-14 के बीच । स्थान-कानपुर ।2. अर्थ की रक्षा करते हुए वाक्य की बनावट बदलें ।
(क) चौदह साल की ठप्र में जब मैं वापस लखनऊ आया फेल होकर, तब कपिला जी अचानक लखनऊ पहुँची मालूम करने की लड़का जो है वह कुछ करता भी है य आवारा या गिरहकट हो गया, बह है कहाँ।
उत्तर- चीदह साल की उम्र में फेल होकर मैं वापसं लखनऊ आ गया, तब कपिला जी अचानक लखनऊ मालूम करने आई कि लडका जो था, वह कहाँ है। कूछ करता है या आवारा, गिरहकट हो गया(ख) वह तीन साल मैंने खूब-------------- रिलैक्स होने के लिए ।
उत्तर- अगर कुछ बढ़ना है तो यही टाइम है । मतलब यही सोचकर वह तीन साल मेने खूब रियाज किया और बाद में जब थक जाऊँ तो रिलैक्स होने के लिए कभी सितार, कभी गिटार, कभीहारमोनियम लेकर बजाऊँ ।
3. पाठ से ऐसे दस वाक्यों का चयन कीजिए जिससे यह साबित होता हो कि ये वाक्य आमने-सामने बैठे व्यक्तियों के बीच की बातचीत है । लिखित भाषा के नहीं।
उत्तर- (i) तुम्हारा लड़का नहीं होगा तो तुम भी नहीं रह सकते । (ii) आते हैं स्कूल और सोजाते हैं। (iii ) तो चाचा कहने लगे देख भैया बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह । (iv) जब तक तुम्हारा लड़का मुझे नजराना नहीं देगा गण्डा नहीं बाँधूगा । (v) इसमें एक पेसा नहीं दूँगा। (vi) यह मेरा पैसा है । (vin ) मैं इसका गुरु हूँ और इसने मुझे नजराना दिया है। (vi) शागंदा में ऐसा है कि अब तुम हो इतने असें से। (ix) मैंने कहा मेरे साथ फोटो खिंचाना है क्या तुम्हें । (x) चाची से आप पूछे महाराज बिन्दादीन के बाद पहले और कौन थे तो उनको नहीं मालूम ।4. निम्नलिखित वाक्यों से अव्यय का चुनाव करें।
(क) जब अंडा पूछे तो नहीं खाता था, पर जब मूंग की दाल कहें तो बड़े मजे से खा लेता था ।
उत्तर- जब, तो, पर ।(ख) एक सीताराम बानेला करके लड़का था अमीर घर का ।
उत्तर- एक ।(ग) बिल्कुल पैसा नहीं था घर में कि उनका दसवाँ किया जा सके।
उत्तर- कि ।(घ) फिर जब एक साल हो गया तो कहने लगे कि अब तुम परमानेंट हो गए।
उत्तर- फिर, जब, एक, तो, कि, अव ।शब्द निधि :
क्रोडस्थ गोद या अंक में स्थित । हलकारे = संदेशबाहक, कारिंदा । साफा वस्त्र जिसे नर्तक कंधे से लेकर कमर तक लपेट लेता है। अचकन = पोशाक विशेष । मेजरमेंट = नाप, माप । मस्का = मक्खन (मस्का लगाना या मक्खन लगाना मुहावरा भी है)। परन = तबले के वे बोल जिन पर नर्तक नाचता और ताल देता है। बॉँदश = ठुमरी या अन्य प्रकार के गायन के बोल, स्थायी । दाल का चिल्ला = उबले हुए दाल को मसलकर बनाया गया व्यंजन । गण्डा बाँघना = दीक्षित करना= शिष्य स्वीकार करना। नजराना = भेट, उपहार, गुरुदक्षिणा । नागासाफ लंबा - अनुपस्थित, हाजिर नहीं होना, गायब रहना। गिरहकट = पॅंतरेबाज, गाँठ काट लेनेवाला, पाकेटमार विशेष परमानंट स्थायी । चरण = छंद की एक इकाई । टुकड़े = किसी पद की पंक्ति । तिहाइयाँ = तीसरे हिस्से । बैले = यूरोपीय नृत्य विशेष जिसमें कथानक, भावाभिनय और नृत्य तीनों शामिल होते हैं । अरसा समय, अवधि। गलीचा = फर्श या बिस्तर जो नरम हो । मिजराब सितार बजाने का एक तरह का छल्ला । लहरा = छंदमय आरोही गति जो भावप्रसंग के साथ हो। शा्गिद = शिष्य । लाजवाब जिसका जवाब न हो, अद्वितीय, अनुपम ।